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विवेक : अहिंसा को जीने का गुर
मेरे प्रिय आत्मन् !
आज हम कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण सूत्रों की गहराई में उतरेंगे जो हमारे जीवन में अहिंसा को साकार और मूर्त करने में सहायक बनेंगे। अहिंसा विश्वधर्म की धुरी है । यह अध्यात्म का अनुष्ठान और मानवता की माँ हैं। एक अहिंसा से जुड़ना धर्म के समस्त पहलुओं से जुड़ जाना है। एक अहिंसा की इबादत समग्र इन्सानियत की इबादत है । अहिंसा की पराकाष्ठा को छूना धर्म और अध्यात्म की ऊँचाई को छूना है।
अहिंसा मानवता की मुंडेर पर मोहब्बत का जलता हुआ चिराग है । अब तक न जाने कितनी सदियों ने अहिंसा को जीने और उसे अधिक परिष्कृत करने की कोशिश की है | अहिंसा न तो वर्तमान की देन है और न ही किसी व्यक्ति विशेष की विरासत है। हजारों हजार वर्ष बीते हैं अहिंसा के वर्तमान रूप को विकसित होने में। अहिंसा ने अनगिनत उतार-चढ़ाव देखे हैं | अहिंसा की शुरुआत में भले
हिंसा और युद्ध की भूमिका रही हो, पर अहिंसा का उपसंहार सदैव शांति और अयुद्ध की घोषणा से ही हुआ है। लोगों में लड़-मर कर भी अन्ततः यही जाना है कि शांति की स्थापना युद्ध और आतंक से नहीं बल्कि प्रेम, मैत्री और पारस्परिक सौहार्द से ही संभव है। हम तो उस संस्कृति के संवाहक और दूत हैं जिसने यह सिखाया है कि यदि किसी शरणागत कबूतर की रक्षा के लिए तुम्हें अपने शरीर का
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