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जागे सो महावीर यदि परिग्रह का सम्बन्ध वस्तु की मात्रा से ही होता तो फिर राजा जनक और चक्रवर्ती भरत के पास तो अकूत खजाना था। फिर भी उन्हें विदेह और अपरिग्रही कहा गया। श्रीकृष्ण के तो बत्तीस हजार रानियाँ थीं, फिर भी उन्हें अनासक्त योगी कहा गया। परिग्रह का सम्बन्ध तो व्यक्ति का वस्तु के प्रति ममत्व या मूर्छाभाव से है। जहाँ-जहाँ पर भी व्यक्ति ने 'मेरे' का आरोपण कर दिया है वह सब परिग्रह है। और तो और, भगवान ने तो देह को भी परिग्रह कहकर देहातीत-भाव रखने को कहा है। ____ दो साड़ियाँ भी परिग्रह हो सकती हैं और संभव है सौ महल भी परिग्रह न हों। मुख्य बात है व्यक्ति का वस्तु के साथ रागात्मक सम्बन्ध । एक भिखारी भिखारी की तरह से परिग्रह करता है और एक करोड़पति करोड़पति की तरह से। एक भिखारी भी सड़क के जिस कोने में बैठेगा, वहाँ वह दूसरे को कभी नहीं बैठना देगा। वह कहेगा कि यह जगह तो मेरी है।
कहते हैं : एक बार एक भिखारी जिस जगह पर बैठता था, वहाँ न बैठकर किसी नई जगह पर बैठा था। एक आदमी जो रोज उसको उस जगह पर बैठा देखता था, उसने भिखारी से पूछा, 'तू आज यहाँ कैसे बैठा है? क्या उस पुरानी जगह से तुझे किसी ने धक्का देकर हटा दिया है? वह मौहल्ला तो धनीमानी लोगों का है और वहाँ के लोग तो तुझे भीख भी बहुत देते थे।' भिखारी बोला, 'नहीं साहब, वहाँ से मुझे किसी ने धक्का देकर नहीं निकाला है। दरअसल कल मैंने अपनी लड़की की शादी कर दी है इसलिए वह जगह दहेज में मैंने अपने जमाई को दे दी है। अब उस जगह पर मेरा जमाई बैठकर भीख मांगेगा।' ____ यह है मूर्छा, जहाँ भीख माँगने की जगह पर भी व्यक्ति अपना अधिकार समझता है। भला, जब 'सबै भूमि गोपाल की' है, फिर व्यर्थ की मूर्छा क्यों?
विचार करें कि हमारे साथ क्या जाने वाला है ? जब एक सूई या तिनका भी हमारे साथ नहीं जा सकता तो यह व्यर्थ की माथापच्ची और आसक्ति कैसी?
इन व्यर्थ के संग्रहों से क्या होगा? आपके दादा ने जोड़ा, वे खाली हाथ चले गये। पिताजी ने जोड़ा, वे भी खाली हाथ गये और आप भी खाली हाथ ही जाएंगे। कभी आपने पूणिया के बारे में मनन किया कि उसकी गिनती भगवान की पर्षदा के मुख्य श्रावकों में क्यों होती है? पूणिया नगर सेठ था। एक नगर सेठ के पास कितनी सम्पत्ति होती है, इसका अनुमान आप लगा सकते हैं। पर उसने ऐसा
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