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________________ व्रतों की वास्तविक समझ १८१ पंजीकृत कराने और ८० जी की छूट दिलाने के लिए कह दिया। आयुक्त ने सब काम करवाकर कागज साइन करके बाब को भेज दिए। पर एक दो तो क्या दसबीस दिन बीत गए, फिर भी पंजीकरण और छूट की अनुमति की फाइल ट्रस्ट के पास नहीं पहुँची। हमने आयुक्त को फिर यह बात कही। वह बोला, 'मैंने तो उसी दिन सारा कार्य करके फाइल बाबू को भेज दी थी। आप बाबू के पास से फाइल मंगवालें।' वे लोग बाबू के पास गए और बोले कि आयुक्त महोदय ने वह फाइल मंगवाई है। उसने कहा, 'हाँ, वह फाइल मेरे पास आई जरूर थी, पर मिल नहीं रही है। जब मिलेगी तब भिजवा दूंगा।' इस तरह से दस दिन और बीत गए, पर फाइल का कोई अता-पता ही नहीं लगा। अन्त में आयुक्त को ही यह कहना पड़ा कि आप उस बाबू को सौ दो सौ रुपये खिलाइए, तभी वह आपकी फाइल देगा। जब ट्रस्ट के सदस्यों ने उस बाबू के सामने उसके एक महीने के चाय पानी के खर्च का बिल केन्टीन को चुका दिया तो थोड़ी ही देर में फाइल भी सामने आ गई। ___ आज हर काम करवाने के लिए पेपरवेट रखना ही पड़ता है। पेपर वेट भी दो तरह के हैं, एक तो वह जो इसलिए रखा जाता है कि पेपर उड़े ही नहीं और दूसरा वह जो इसलिए रखा जाता है ताकि पेपर हिल सके और फाइल आगे खिसक सके। दूसरे वाले पेपर वेट का उपयोग तब किया जाता है जब पेपर उड़ता नहीं है या उठता नहीं है। तब पेपर वेट तो बाबू के पास रह जाता है और कागज हमारे हाथ में आ जाते हैं। बेईमानी करने वाला ही नहीं, उसका साथ देने वाला भी बेईमान होता है। व्यक्ति अपनी कमाई पर विश्वास रखे, दूसरों की सम्पत्ति पर अपना स्वामित्व नजमाए। यदि व्यक्ति शुद्ध श्रावकत्व या श्रमणत्व का जीवन जीना चाहता है तो वह चोरी से स्वयं को बिलकुल अलग रखे। __ भगवान चौथे व्रत 'अपरिग्रह' के सम्बन्ध में अपनी ओर से कहते हैं कि व्यक्ति अनावश्यक परिग्रह न करे। महावीर ने वस्त के परिग्रह को ही परिग्रह नहीं कहा है, बल्कि उन्होंने वस्तु के प्रति ममत्व को, मेरेपन के भाव को भी परिग्रह कहा है। परिग्रह का अर्थ है ग्रहण करना या पकड़ लेना। ऐसा नहीं है कि परिग्रह का अर्थ लाखों-करोड़ों की सम्पत्ति जमा कर लेना ही है, जबकि एक छोटा-सा रूमाल भी परिग्रह हो सकता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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