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________________ १७३ व्रतों की वास्तविक समझ ___ धरती पर रहने वाले धार्मिक लोग अपनी दकियानूसी सोच को छोड़कर विश्वकल्याण के लिए प्रेम,दया,आत्मीयता और करुणा को फिर से रोशन करें। युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। युद्ध तो स्वयं समस्या है। युद्ध ने किसी समस्या का समाधान नहीं किया है। फिर वह चाहे रूस और अमेरिका के बीच का युद्ध हो, इजराइल और फिलिपीन्स के बीच का युद्ध या तमिल और श्रीलंका के बीच का युद्ध हो। भारत-पाकिस्तान के युद्ध ने न भारत को कुछ दिया और न पाकिस्तान को। ____घर में अंधेरा हो तो चिराग जलाना आवश्यक है, पर अंधेरे को मिटाने के लिए घर को ही जला देना मूर्खता ही है। मैं जानता हूँ कि तुम्हारा 'इगो' बार-बार तुम्हें लड़ने के लिए उकसाता है। पर लड़ना ही है तो अपने भीतर पलने वाले स्वार्थ और कषायों से लड़ो। जो आतंकवाद एक अजगर की तरह अपना मुँह खोलकर सारी मानवजाति को, सारी पृथ्वी को निगलना चाहता है, उससे लड़ो। कहते हैं : आज देश ही नहीं, सारा विश्व आतंकवाद, उग्रवाद से व्यथित है। गरीबी, बेरोजगारी,अन्याय, अत्याचार, प्रदूषण, कैंसर, एड्स - न जाने, ऐसी कितनी समस्याएँ हैं, जिनके समाधान की वर्तमान विश्व को तलाश है। इन समाधानों के लिए अतीत में भी प्रयास हुए हैं और आज भी हैं। हम वर्तमान और अतीत के बीच सामंजस्य स्थापित करें और अतीत के मूल्यों को वर्तमान में भी लागू करें। राजा चण्डप्रद्योत ने जब मृगावती के रूपसौन्दर्य के बारे में सुना तो वह उससे विवाह करने के लिए लालायित हो उठे। पर मृगावती ने इस शादी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। बदले में चण्डप्रद्योत ने मृगावती के राज्य पर धावा बोल दिया। मृगावती ने राज्य के परकोटे के सभी दरवाजे बन्द करवा दिये। चन्द्रप्रद्योत की पूरी सेना परकोटे के बाहार डेरा डालकर बैठ गई। इसी इंतजार में कि एक-नएक दिन तो अन्न और जल के भण्डार समाप्त होंगे और तब तो दरवाजे खुलेंगे ही। उस समय धावा बोल दिया जाएगा। आखिरकार छह महीने बाद ऐसी स्थिति भी आ गई और अगले दिन धावा बोलने की तैयारी करली गई। मृगावती भी अगले दिन होने वाले युद्ध की तैयारी में जुटी थी। तभी उन्होंने एक संदेश सुना कि करुणासागर भगवान महावीर गुणशील चैत्य में पधारे हैं और उनकी कल मंगल देशना होगी। मृगावती और चन्द्रप्रद्योत यह सोचने लगे कि भगवान स्वयं चलकर हम तक पहुँच चुके हैं तो क्या हम एक दिन के लिए भी युद्ध टाल नहीं सकते? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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