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जागे सो महावीर
आने वाला समय और पीढ़ियाँ हमारी सभी ऋणी रहेंगी जब हम आने वाले कल के लिए ऐसे दरख्त लगाकर जाएँ जिनके फल, फूल और छाया उन्हें लम्बे समय तक मिलते रहें। आज हम भय और आतंक के गंभीर दौर से गुजर रहे हैं। सभी के पास यही प्रश्न है कि आज क्या हुआ और कल क्या होगा? विश्व की महाशक्ति कहलाने वाला अमेरिका आतंक के भंवर में घिर गया है और उसके द्वारा की जाने वाली जवाबी कार्यवाही की तैयारी देखकर सारा विश्वस्तब्ध है कि कहीं तीसरा विश्व-युद्ध न छिड़ जाए। आज सारी प्रबुद्ध मानवजाति को यह बात समझ में आ गई है कि यह धरती यदि टिकी रहेगी तो वह केवल प्रेम, बन्धुत्व और सहिष्णुता के आधार-स्तंभों पर ही। शस्त्र, भय और आतंक से यह धरती कभी सुरक्षित नहीं रह सकती। जहाँसारी मानवजाति ने विज्ञान और अध्यात्म के सिद्धान्तों को मानव के लिए कल्याणकारी माना है, वहीं विज्ञान के आविष्कारों का मानवता के विरुद्ध उपयोग करना वास्तव में हमारे लिए खतरे की एक सूचना है।
किसी संस्कृति को पनपने में जहाँ बीस वर्ष लगते हैं, उसी संस्कृति के नष्ट होने के लिए बीस दिन का युद्ध ही पर्याप्त है। यदि इस धरती से आतंक और उग्रवाद मिट जाए और जितना व्यय शस्त्रों के संग्रहण में किया जाता है, उतना यदि मानव कल्याणकारी कार्यों तथा रोजगार के अवसरों, शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च किया जाए तो इस धरती का स्वरूप शायद कुछ और ही हो। जिन लोगों के पास अपनी कोई बुद्धिजन्य चेतना है, वे आज विश्व के जिस कोने में भी बैठे हैं, इसी बात पर चिंतन कर रहे हैं कि इस आतंकवाद को कैसे समाप्त किया जाए? अतीत में एक युद्ध महाभारत का युद्ध हुआ था, एक युद्ध कृष्ण और कंस के मध्य हुआ था और एक युद्ध राम और रावण के बीच हुआथा। वर्तमान में भी एक ऐसा संग्राम और छेड़ा जाए जो आतंक और भय को मिटाने का लक्ष्य लिये हो।
पिछले पचीस सौ वर्षों में पाँच हजार से भी ज्यादा युद्ध हुए हैं, पर कोई भी युद्ध यह सिद्ध नहीं कर पाया कि युद्ध शान्ति के आधार हो सकते है। एकमात्र कलिंग का युद्ध ऐसा हुआ जिसके बाद अयुद्ध की घोषणा हुई, पर शांति युद्ध के द्वारा नहीं बल्कि युद्ध के बाद अयुद्ध की घोषणा से हुई। वह किसी अशोक का समय रहा जहाँ धरती ने अहिंसा और शान्ति के द्वारा अपने अस्तित्व को कायम रखने की कला जानी। तब किसी गांधी द्वारा देश को आजाद करने के लिए अहिंसा और शांति का शंखनाद किया गया और धरती पर फिर से अहिंसा प्रतिष्ठित हुई।
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