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जागे सो महावीर
का दान करता है। ऐसे व्यक्ति के दान के सामने बड़े-बड़े करोड़पति धरे रह जाते हैं। उसके घर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता। उस व्यक्ति का धंधा है - डोडों का। जब उसने यह धंधा प्रारंभ किया था, तब शायद वह दो-तीन रुपये की कमाई करता होगा, पर आज यह धंधा इतना चल पड़ा है कि उसकी कमाई लाखों में है। लक्ष्मी की यह विशेषता है कि जो उसे त्यागे, वह उसके आगे और जो उसे भोगे, उससे भागे। ___ साधना के संदर्भ में ही एक और उदाहरण दूँगा। गुजरात के साधक श्री राजचन्द्र का। उनका उदाहरण इसलिए देना चाहूँगा कि इस व्यक्ति ने पेंट-कमीज या धोती-कुर्ते का त्याग नहीं किया, लेकिन यह व्यक्ति इस तरह की गहरी साधना करके गया कि इस बीसवीं शताब्दी में कोई ऐसा साधक नहीं हुआ जो साधना के क्षेत्र में उनके मुकाबिले खड़ा हो। हमारीधर्म-परंपरा में जहाँ संतों को महत्त्व दिया जाता है, वहाँ इस साधक व्यक्ति के आज हजारों-लाखों की संख्या में अनुयायी हैं। यह व्यक्ति युवा अवस्था में ही चल बसा, पर किसके बलबूते पर उसने इतनी ऊँचाइयों को प्राप्त किया? अपनी साधना की पुण्य पारमिताओं के बल पर ही वह इस लोकपूज्य स्थान पर पहुंचा। आज इस व्यक्ति के नाम पर सैंकड़ों आश्रम हैं। गृहस्थ में रहकर भी व्यक्ति साधना की जिन ऊँचाइयों पर पहुँच सकता है, उसका प्रत्यक्ष उदाहरण श्रीमद् राजचन्द्र है।
इस देश में धर्म और दर्शन के मामलों में जिनका प्रमुख स्थान है उन्हीं में से एक हैं डॉ. सागरमल जैन। मैं उनका भी जिक्र करना चाहूँगा। बात उन दिनों की है जब मैं पी-एच.डी. के लिए शास्त्रों का अध्ययन कर रहा था। एक दिन, रात के करीब सात बजे मैंने उन्हें संदेश भिजवाया कि आप आधे घंटे बाद पधार जाएँ क्योंकि मुझे किसी शास्त्र के बारे में आपसे कुछ चर्चा करनी है। उन्होंने अपनी स्वीकृति भेज दी। आधा घंटा बीता, एक और डेढ़ घंटा भी बीत गया, पर वे नहीं
आए। करीब नौ बजे वे पधारे। हमने उनको देखकर सोचा कि अब वे शास्त्रचर्चा कब करेंगे और कब सोएँगे। चूंकि वे हमारे लिए गुरुतुल्य रहे, इसलिए हमने उनसे कहा तो कुछ भी नहीं और हम शास्त्र-चर्चा में बैठ गए। करीब एक घंटे बाद उनका हाथ यकायक सिर पर चला गया और उन्होंने सिर को कुछ हल्का-सा दबाया। जब उनका हाथ नीचे आया तो हम यह देखकर दंग रह गए क्योंकि उनका हाथ खून से लथपथ था।
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