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जागे सो महावीर
की रात भी ऐसे गुजरती है मानो कोई साधक ध्यान या कायोत्सर्ग की प्रक्रिया से . गुजर रहा हो।
ईश्वर करे, आप सब के दिन और रात, प्रार्थना और स्वाध्याय द्वारा धन्य और पावन बनें। पूजा और प्रार्थना का कभी गरीबी और अमीरी से संबंध नहीं होता। जो पूजा इसलिए नहीं करते कि वे इसे आडम्बर मानते हैं या वे मूर्ति-पूजा के विरोधी हैं और उसमें निष्ठा नहीं रखते, उनसे भी मैं यह अनुरोध करूँगा कि आप द्रव्य-पूजा भले ही न करें, पर भाव-पूजा तो अवश्य करें। हम सन्तजन जो द्रव्य-पूजा नहीं करते, हम भी तो भाव-पूजा करते ही हैं। जो द्रव्य-पूजा करते हैं, वे इस बात का सदैव ध्यान रखें कि द्रव्य-पूजा, भाव-पूजा तक पहुँचने के लिए मात्र एक सीढ़ी है। हम द्रव्यता में जितना समय देते हैं, उससे तिगुना समयभावपूजा में दें।
व्यर्थ के चढ़ावे, व्यर्थ का आडंबर और वस्तुओं का समर्पण! चावल का साथिया तो एक निमित्त भर है। यदि द्रव्यपूजा को गौण कर दिया जाए तो स्थानक
और तेरापंथी समाज का मूर्तिपूजक समाज से जो विरोधाभास है, वह समाप्त ही हो जाए। तब सारा जैन समाज एक मंच पर एकत्र हो सकता है। प्रधानतातोभावपूजा की ही है। ___ जो व्यक्ति केवल भावपूजा को की स्वीकारते हैं, उन्हें मेरा एक प्यार भरा निमंत्रण है कि वे अपने कदम ऐसे स्थान पर रखें जहाँ जाकर परमात्मा की स्मृति हो आए। जिस तरह घर जाने पर घर वालों की याद आती है, फिल्म हॉल में स्मृति किसी अभिनेत्री से जुड़ती है, वैसे ही मंदिर ऐसे पावन धाम हैं, जहाँ व्यक्ति को उस परमात्मा की दिव्य स्मृति हो आती है। यह स्मृति अशांति और दु:ख को शांति और सुकून में बदल देती है। आप मंदिर में जितना भी समय बिताएँ या जितनी भी धर्मक्रिया करें, उसमें आपकी समग्रता जुड़ी हो। कार्य भले ही थोड़ा हो, पर वह पूर्ण समग्रता, निष्ठा, आस्था और श्रद्धा से हो।
आपको याद होगा, गोमटेश्वर बाहुबलि का मस्तकाभिषेक। गोमटेश बाहुबलि की प्रतिमा आज संपूर्ण एशिया भर में दूसरे नम्बर की सबसे बड़ी प्रतिमा है। इस प्रतिमा का निर्माण राजा चामुण्डराय द्वारा कराया गया और एक हजार वर्ष बाद हमारे ही देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा इस प्रतिमा का महामस्तकाभिषेक किया गया। मैं बात उस समय की कर रहा हूँ जबकि उस
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