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सम्यक्श्रवण : श्रावक की भूमिका बरबादी करता है और अपने दाँतों का श्रम भी व्यर्थ करता है। वैसे भी कुतर्की अपनी बुद्धि और ज्ञान का दुरुपयोग करता है, साथ ही सामने वाले के दिमाग का भी। मेरे पास बहुत से लोग आते हैं। जब देख लेता हूँ कि यह कुतर्की है, मात्र वाद-विवाद के लिए आया है तो मुझे मौन ही श्रेष्ठ लगता है। वह कहता है कि 'आप मौन क्यों हो गये?' मैं कहता हूँ, 'क्षमा करें, मुझे इतना ही आता है।' वह बोलता है कि आपने तो इतने शास्त्र पढ़ रखे हैं। आपको तो सब ज्ञान है। फिर आप क्यों कहते हैं कि मुझे इतना ही ज्ञान है। मैं कहता हूँ कि हम दोनों में से कोई एक ज्ञान के लिए अयोग्य है, इसीलिए मैं मौन हूँ। ____कई व्यक्ति ऐसे होते हैं जो मात्र अपने को ज्ञानी प्रदर्शित करने के लिए कुछ प्रश्न लिख लेते हैं और हर सन्त के पास जाकर उसका समाधान पूछते हैं। उनका उद्देश्य प्रश्नों का समाधान पाना नहीं, बल्कि अपने ज्ञान का प्रदर्शन और दूसरों की परीक्षा करना रहता है। एक व्यक्ति मेरे पास भी आया और जब मुझे उसके इस स्वभाव का पता चला तो मैंने उसे उन दस प्रश्नों के समाधान इस प्रकार दिए कि वह अन्यत्र जाने के काबिल ही नहीं रहा। ___ हम संतों के पास जिज्ञासा-भाव से जाएँ और उनके सामने अपने प्रश्न रखें। यदि उनके उत्तर से हम संतुष्ट हों तो ग्रहण कर लें अन्यथा उनका ज्ञान उनके पास। ज्ञान मात्रशब्दों से प्रकट नहीं होता। वह तो मन के मौन की निपज है। चतुराईपूर्वक वाणी का उपयोग बहुत ही अच्छा लगता है, पर वह वाणी कुछ समय पश्चात् लुप्त हो जाती है। वही वाणी अमर होती है जो ठेठ अन्तर से उपजती है। ___ज्ञान सदैव अपने उपयोग के लिए हुआ करता है, दूसरों के लिए नहीं। ध्यान रखें, ज्ञान वही है जिससे व्यक्ति के मैत्री-भाव का विस्तार हो, प्राणी मात्र के प्रति प्रेम का विकास हो और राग-द्वेष के बंधन शिथिल हों। ज्ञान व्यक्ति को आनन्द, शांति, प्रसन्नता, चित्त की निर्मलता और आह्लाद प्रदान करता है। ज्ञान कभी उदासीनता नहीं देता।
मैं ज्ञान को जीवन की मुक्ति की नींव मानता हूँ। मेरे लिये ज्ञान का अर्थ है समझ।
समझ मिली तो मिल गई, भवसागर की नाव। बिन समझे चलते रहे, भटके दर-दर गांव।
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