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जागे सो महावीर
नासमझी ही अज्ञान है। नासमझी ही भटकाव है। नासमझी ही मूर्छा और प्रमाद है। समझ के अभाव में ही हंस कौओं के समूह में रहता है और भटकता है। समझ आते ही हंस अपनी गति को ग्रहण कर लेगा।
समझ आती है अनुभव से, समझ आती है जिन्दगी में लगने वाली ठोकर से, समझ आती है चिंतन-मनन के निष्कर्ष से। वक्त बड़े-बड़ों को ठोकर लगाता है। चाहे व्यक्ति कितना भी गुस्सैल या घमंडी क्यों न हो, जो अपने आप नहीं सुधरते, समय उन्हें ऐसी कोहनी मारता है कि सारी अक्ल ठिकाने आ जाती है । संस्कृत में एक प्यारा-सा सूक्त है -
काक: कृष्ण: पिक: कृष्ण: को भेदः पिककाकयोः।
वसन्तसमये प्राप्ते, काकः काकः पिक: पिकः। कौआ भी काला होता है और कोयल भी। दोनों में भेद करना कठिन है, पर वसन्त ऋतु के आते ही पता चल जाता है कि सारे काले एक जैसे नहीं होते। तब कौआ, कौआ साबित हो जाता है और कोयल, कोयल ही रहती है।
जीवन में जिस पहलू पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए, वह ज्ञान और समझ ही है। क्रिया से पहले ज्ञान चाहिए। बिना ज्ञान के की गई धार्मिक आराधना भी अंधविश्वास की पोषक होती है। आप शिक्षा, समझ और ज्ञान को जीवन की बुनियादी नींव जानें।
सत्संग – सम्यक् श्रवण को पहला चरण जानें। रुचि और लगन को दूसरा चरण; समझ, स्वाध्याय और ज्ञान को तीसरा चरण। आज हम इन तीनों बिन्दुओं पर विचार करेंगे। यदि हम तीनों सूत्रों पर भली भांति मनोयोगपूर्वक ध्यान देंगे तो जीवन में अवश्य कुछ सार्थक क्रियान्विति होगी। बातें हमेशा छोटी-छोटी ही होती है, पर छोटी-छोटी बातें भी आत्मसात् कर ली जाएँ तो वे छोटी-छोटी नहीं रहती।' किरण छोटी-सी होती है, पर वही हमें सूरज तक पहुँचाती है। आँख छोटी-सी होती है, पर उस छोटी-सी आँख से भी सम्पूर्ण आकाश को देखा जा सकता है। कुछ करने की, कुछ पाने की और कुछ होने की ललक हो,तो सुई के छेद से भी स्वर्ग निहारा जा सकता है, स्वर्ग को पाया जा सकता है। ___ ध्यान रखें, जब हम सत्संग में जाएँ तो किसी तरह का पूर्वाग्रह / दुराग्रह न रखें। दूसरी बात, श्रोता बनकर जाएँ, सोता या सरोता बनकर नहीं। तीसरी बात,
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