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सम्यक् श्रवण : श्रावक की भूमिका
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देती है, 'हाँ, मैं जानती हूँ मेरे पति दो ही चीजें पसन्द करते हैं, एक तो मुझे और दूसरा कोलगेट टूथपेस्ट ।' यह सब मात्र शब्दों और चित्रों से व्यक्ति के मन में आकर्षण या रुचि पैदा करने का तरीका है । मैं आपसे जो कुछ कह रहा हूँ, वह कोई ज्ञान का वितरण नहीं है । यह अपने आप में स्वाध्याय है । भगवान् के सूत्रों पर बोलने का अपना आनंद है, अपना रस है । इसीलिए बोल रहा हूँ । महापुरुषों की वाणी हमें भीतर का कुछ अलग ही सुकून देती है। वह कुछ अलग ही मार्गदर्शन कराती है। व्यक्ति से मुझे कोई राग नहीं है । अमृत वाणी से मुझे प्रेम है। वाणी किसकी है, इसमें फर्क हो सकता है। महावीर - मुहम्मद में फर्क हो सकता है, कृष्ण - कबीर में दो रूप हो सकते हैं पर उनके सत्य में, उनके अमृत में फर्क नहीं है ।
महापुरुषों की वाणी पढ़ने में, सुनने में बड़ा मजा आता है, बड़ा आनंद मिलता है। ठेठ अन्तरमन में हिलोर जग जाती है। बस, इसीलिए बोल देता हूँ ।
ज्ञान का रस तो अवर्णनीय है । कभी रैदास या कबीर को पढ़ो, उनकी जीवनशैली को देखो, चौंक जाओगे। कबीर खाना खा रहे हैं। उनसे कोई पूछता है कि 'क्या कर रहे हो?' वे कहते हैं कि 'पूजा कर रहा हूँ ।' कबीर बाजार जा रहे हैं और कहते हैं कि मंदिर जा रहा हूँ । शायद दुनिया की नजर में वे बेवकूफ रहे होंगे पर यदि मुझसे कोई पूछे तो मैं कहूँगा कि उनका ज्ञान अथाह था, उनकी हर बात में गहराई छिपी थी। वे खाना खाते तो इस भाव से खाते कि यह खाना मैं नहीं खा रहा हूँ बल्कि मेरे अन्दर विराजमान परमपिता को खिला रहा हूँ। जब भगवान को बालभोग समर्पित किया जाता है तो वह प्रसाद बन जाता है । उसको समर्पण करना पूजा हो जाया करती है।
आप जब मंदिर जाते हैं तो वहाँ छलकपट नहीं करते। किसी पर बुरी नजर नहीं डालते। इसी प्रकार जब व्यक्ति बाजार में जाकर भी छल-कपट नहीं करता, किसी पर कुदृष्टि नहीं डालता और पूर्णतया प्रामाणिक रहता है तो उसका बाजार जाना भी किसी मंदिर की परिक्रमा लगाने से कम नहीं होता । इसीलिए तो कबीर ने कहा । 'खाऊं - पीऊं सो सेवा, ऊहूँ- बैठूं सो परिक्रमा ।' जब व्यक्ति का किसी के प्रति पूर्णतया समर्पण हो जाता है तो उसका हर कार्य उसी के प्रति समर्पित होता है ।
क्या आप जानते हैं कि गोरा किस जाति के थे? वे कुम्हार थे, मिट्टी के घड़े बनाते थे । वे कहते, 'प्रभु ! मुझे तो हर जगह आप ही दिखते हैं, मिट्टी में भी आप, घड़ा बनाने वाले भी आप, बेचने वाले भी आप, खरीदने वाले भी आप ।' कैसा
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