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सम्यक्श्रवण : श्रावक की भूमिका
हैं। रोहिणिय देखता है कि उन नृत्यांगनाओं की मालाएँ मुरझा रही थीं, पलकें भी झपक रही थीं और उनके पाँव भी जमीन से लग रहे थे। वह तुरन्त समझ गया कि राजा उसे मूर्ख बना कर उससे चोरी कबूल कराना चाहता है। उसने उन नृत्यांगनाओं से कहा कि मैंने तो कोई चोरी नहीं की। वह अन्य कोई मनगढ़ंत कहानी सुना देता है और इस प्रकार वह राजा से बच जाता है।
वह मन-ही-मन सोचता है अहो ! जिनके मात्र तीन शब्दों ने मुझे मृत्युदण्ड से बचा दिया, उनकी अमृतवाणी मेरे जीवन के लिए कितनी कल्याणकारी होगी? कोई गहन मूर्छा के चलते ही मेरे पिता ने मुझे इस अमृतवाणी से दूर रहने को कहा होगा। अहो ! ये तो मेरे परमपिता हैं जिन्होंने मुझे मृत्यु के मुख से निकाल दिया। तब कहते हैं कि वह रोहिणिय चोर जब भगवान के समवसरण में जाता है तो वहाँ उसका रोहिणिय मिट जाता है और वहीं रोहित मुनि का जन्म होता है। ___ इसलिए श्रवण व्यक्ति के जीवन के लिए रामबाण हो सकता है, बशर्ते व्यक्ति मनोयोगपूर्वक सुनकर उसे श्रेयस्कर आचरण का लक्ष्य रखे।
भगवान अपने अगले सूत्र में कहते हैं - जह जह सुयभोगाहइ, अइसयरसपसर संजुयमपुव्वं ।
तह तह पल्हाई मुणी, नव नव संवेग संद्धाओ। 'जैसे-जैसे मुनि अतिशय रस के अतिरेक से युक्त अपूर्व श्रुत का अवगाहन करता है वैसे-वैसे नित-नूतन वैराग्ययुक्त श्रद्धा से आह्लादित होता है।'
भगवान यहाँ सम्यग्ज्ञान पर चर्चा करते हुए कहते हैं कि जैसे-जैसे व्यक्ति लगनपूर्वक ज्ञान में डूबता जाता है, वैसे-वैसे उसके जीवन में वैराग्य और श्रद्धा का आनन्द उदित होता है। प्रथम चीज है ज्ञान, लेकिन उससे भी प्रथम कोई पदार्थ है तो वह है ‘अतिशय रस' अर्थात् व्यक्ति की लगन,उसकी रुचि। प्रत्येक व्यक्ति उसी बिन्दु पर एकाग्र हो सकता है, उसी जगह उसका मन टिक सकता है, जहाँ उसे रस आता हो। जैसे कोई बच्चा प्रथम श्रेणी से सफल होता है और कोई असफल, इसका कारण यह नहीं है कि असफल होने वाले के पास बुद्धि नहीं है। मूल कारण है व्यक्ति की लगन, उसकी रुचि। मैं, फिर कहूँगा कि बुद्धि किसी की अधिक या कम नहीं होती, मुख्य बात है व्यक्ति की एकाग्रता !
जो बच्चे मेरिट में आते हैं, वे कोई आसमान से नहीं टपकते और न ही कोई बृहस्पति या सरस्वती उनकी बुद्धि में विराजकर अपनी किसी हथौड़ी से उनकी
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