SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३२ जागे सो महावीर वाला है तो दूसरा मार्ग नीचे ले जाने वाला। व्यक्ति जब हिंसा, चोरी, असत्य, परिग्रह एवं अन्यान्य पापों के मार्गों को जान लेता है तभी तो वह उनसे बच पाएगा। इसीलिए भगवान ने कहा कि सुनने के बाद जो कार्य श्रेयस्कर और आत्म-हितकर लगे, उसी का आचरण किया जाए। ___ शब्द व्यक्ति के जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला सकते हैं। आपको याद है न रोहिणिय चोर की घटना ! रोहिणिय का पिता अपने अन्तिम समय में उससे वादा कराता है, 'मुझे वचन दो कि तुम अपने सम्पूर्ण जीवन में किसी संत पुरुष, दिव्य पुरुष के अमृत शब्द नहीं सुनोगे।' रोहिणिय ने देखा कि पिता अन्तिम साँसें गिन रहा है और मेरा ऐसा वादा करने में क्या जाता है? उसने झटपट पिता के सामने यह वादा कर लिया। रोहिणिय ने वादा तो कर लिया था, पर अब उसे निभाना भी था। एक दिन रोहिणिय को पकड़ने के लिए उसके पीछे सिपाही दौड़ रहे थे। अचानक उसके पाँव में एक काँटा गड़ जाता है। जैसे ही वह काँटे को निकालने के लिए नीचे झुकता है, उसे महावीर की वाणी सुनाई देती है। उसे अपना वादा याद आता है और वह काँटे को छोड़कर तुरन्त अपने दोनों हाथ कान पर रख देता है। लेकिन वह सोचता है कि यदि मैंने काँटा नहीं निकाला तो मैं भाग नहीं पाऊँगा और सिपाही मुझे पकड़ लेंगे। इसलिए अभी तो काँटा ही निकाल लेता हूँ और भगवान की वाणी को सुनने का प्रायश्चित्त बाद में कर लूँगा। ___ काँटा निकालते समय उसके कान में भगवान के तीन शब्द पड़ते हैं। वे शब्द हमारे लिए शायद इतने खास नहीं हैं पर कभी साधारण शब्द भी व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन का आधार बन जाया करते हैं। भगवान के जो तीन शब्द उसने सुने, वे थे, 'देवताओं की पलकें नहीं झपकतीं, उनकी पुष्पमाला नहीं मुरझाती और उनके पाँव जमीन से ऊँचे रहते हैं।' रोहिणिय चोर से उसकी चोरी कबूल कराने के लिए राजा ने स्वर्ग जैसा माहौल बनाया। उसमें नृत्यांगनाओं को भेजा कि वे उसे मुग्ध कर उसे आभास कराएँ कि वह मरकर स्वर्ग में आ गया है और उससे उसके द्वारा की गई चोरियाँ कबूल कराएँ। नृत्यांगनाएँ उसे प्रभावित करने का बहुत प्रयत्न करती हैं कि वह स्वर्ग में बैठा है, पर उसी समय रोहिणिय को भगवान के शब्द याद आते हैं कि देवताओं की पलकें नहीं झपकती, पुष्पमाला नहीं मुरझाती और उनके पाँव जमीन से ऊँचे रहते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy