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सम्यक्श्रवण : श्रावक की भूमिका
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हैं, पर जब मैंने इस गाँव में प्रवेश किया तब वहाँ मैंने एक श्मशान देखा जिसमें हर पट्टी पर मरने वाले व्यक्ति का नाम एवं उम्र देखी। उस उम्र के कारण ही मैं असमंजस में हूँ, क्योंकि यहाँ किसी व्यक्ति की उम्र छह माह तो किसी की ढाई वर्ष या दस-बीस वर्ष लिखी हैं। मैं यही सोचकर चिन्तित हूँ कि क्या यहाँ रहने वाले व्यक्तियों की उम्र इतनी छोटी होती है ?'
ग्रामवासी हँसने लगे और बोले, 'महाराज, ऐसा लगता है कि आपने ज्ञान पढ़ा है, पर गुना नहीं है। आप यहाँ जिन लोगों को प्रवचन सुनाते हैं, उनमें से कितने ही साठ, सत्तर, अस्सी वर्ष के वृद्ध हैं। फिर आपने कैसे सोच लिया कि यहाँ रहने वाले व्यक्ति छोटी उम्र में ही मर जाते हैं ?' विद्वान् ने विचार किया तो उसे उनका कथन सत्य लगा। तब उसने ग्रामवासियों से उन पट्टियों का रहस्य पूछा। उन्होंने जवाब दिया, 'हमारे गाँव में एक नियम है कि प्रत्येक व्यक्ति शाम के समय जब सोने के लिए घर पहुँचता है तो वह सबसे पहले पूरे दिन का हिसाब लगाता है कि उसने कितना समय सत्संग में बिताया, कितना अच्छे कर्मों में बिताया। उसे वह प्रतिदिन एक डायरी में नोट कर लेता है जैसे मैंने आज दो घण्टे सत्संग में बिताए तो मैं इसे नोट कर लूँगा। ___ हमारे गाँव में जब कोई व्यक्ति मरता है तो इस बात की चिन्ता बाद में की जाती है कि उसकी चिता चन्दन की लकड़ी से जलाई जाए या साधारण लकड़ी से। सबसे पहले मरने वाले व्यक्ति की डायरी निकाली जाती है और उसके जीवन के उन सभी घंटों को जोड़ा जाता है जो उसने सत्संग में व अच्छे कार्यों में बिताए। उन कुल घंटों के आधार पर ही उस व्यक्ति की उम्र निकाली जाती है और उसे संगमरमर की पट्टियों पर खुदवाया जाता है, क्योंकि जितना समय व्यक्ति का सत्संग में बीता, वही तो उसका सार्थक समय है और वही तो उसकी उम्र है। बाकी समय तो एक पशु के समान जीवन है। उसे मनुष्य की आयु में कैसे जोड़ा जाए?
यह है श्रावक-जीवन को उदित करने का मूल मंत्र। व्यक्ति जितना समय भगवान की वाणी के श्रवण में, उसके आचरण में बिताता है, उतना समय ही उसका सार्थक समय है। बाकी तो वैसे ही निरर्थक है जैसे नदिया के बहते पानी में जितना पानी लोटे में भर लिया वह अपना हो गया, बाकी का बेकार !
भगवान यह नहीं कहते कि मात्र पुण्य का मार्ग जानो। वे तो कहते हैं कि दोनों ही मार्गों को जानो। चाहे वह पुण्य का हो या पाप का। एक मार्ग ऊपर ले जाने
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