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________________ १३० जागे सो महावीर व्यक्ति को प्रमुदित कर रही थी। जैसे-जैसे गाँव नजदीक आता गया, वह व्यक्ति वहाँ की साफ-सफाई और सुन्दरता को देखकर बहुत ही प्रभावित हुआ। उसने मन में सोचा कि कितना स्वच्छ, सुन्दर और अच्छा गाँव है। यहाँ के लोग भी बड़े ही सुन्दर, अच्छे और नीरोग होंगे। वह थोड़ा और आगे बढ़ा कि उसे एक बड़ा श्मशान दिखाई दिया। वहाँ पर बड़ी-बड़ी सफेद संगमरमर की पट्टियाँ लगी थीं। उनके ऊपर मरने वाले व्यक्तियों के नाम और उनकी उम्र लिखी थी। उम्र को देखते ही वह विद्वान चौंका क्योंकि किसी पट्टी पर उम्र छह महीने तो किसी पर दस वर्ष, किसी पर ढाई वर्ष और एक पट्टी पर इक्कीस वर्ष लिखा था। वह पट्टी सबके बीच में लगी थी और सबसे बड़ी भी थी। उसने मन में सोचा कि क्या यहाँ व्यक्ति इतनी अल्पआयु के ही हैं ? ___वह मन में यह सोचते हुए आगे बढ़ा कि अहो ! इतने सुन्दर गाँव में प्रकृति का कैसा प्रकोप ! थोड़ा आगे बढ़ा ही था कि गाँव के लोगों ने उसे देख लिया। वे उसके करीब आए और उससे उसका परिचय पूछा। उस विद्वान् ने बताया कि वह वाराणसी से आया है, उसका नाम यह है और उसने अमुक-अमुक शास्त्र पढ़ रखे हैं। गाँव के लोगों ने उसका सम्मान किया और कहा कि आज शाम को आप कृपया चौपाल पर पधारें और जितना सम्भव हो, हमें सत्संग से लाभान्वित करें। उस विद्वान ने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। वहाँ के लोगों ने उस विद्वान् का इतना सम्मान-सत्कार किया कि उसकी मान-मनुहार के चलते कैसे दो महीने बीत गये, उसको पता ही नहीं चला। वह वहाँ से जब भी जाने की बात करता तो लोग उससे रुकने की मनुहार करते। एक दिन उसने सोचा कि यहाँ के लोगों की उम्र कम होती है अत: यहाँ रहने से कही मेरी उम्र भी घट न जाए। मेरी उम्र भी कहीं छः महीना ही न रह जाए। अब मुझे यहाँ से प्रस्थान कर ही लेना चाहिए। जब वह शाम को सत्संग के लिए गया तो उसने भगवान की कथा, संदेश और उपदेश सुनाने के बाद अगले दिन अपने प्रस्थान की घोषणा कर दी। गाँव के लोगों ने कहा कि आपको क्या यहाँ कोई असुविधा है जिसके कारण आप जाना चाहते है? उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि मुझे यहाँ कोई असुविधा नहीं है, पर मेरे मन में एक शंका है जिसके कारण मैं इस गाँव को छोड़ना चाहता हूँ। ग्रामीणों ने पूछा कि कृपया आप वह शंका हमें भी बताएँ। उस विद्वान ने कहा, 'यह गाँव स्वर्ग के समान सुन्दर और स्वच्छ है। यहाँ के लोग भी बड़े भले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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