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सम्यक् श्रवणा धावक की भूमिका
सम्यक
मेरे प्रिय आत्मन् !
भगवान महावीर के दिव्य एवं अमृत वचनों में हम कुछ ऐसे सूत्रों पर विचार कर रहे हैं जिनका हमारे जीवन के कल्याण और विकास में सहजतया सहयोग मिलता है। भगवान के मूल मार्ग पर चर्चा करते हुए हमने सम्यक् दर्शन पर विचार किया है और आज हम सम्यक् ज्ञान की तरफ अपनी दृष्टि बढ़ा रहे हैं।
महान् लोगों के शब्द, उनका सान्निध्य और उनकी स्मृति व्यक्ति के लिए वैसी ही कल्याणकारी होती है जैसे कि अंधकार में भटक रहे किसी व्यक्ति के लिए दूर से आती हुई प्रकाश की किरण।आदमी जैसे लोगों के पास बैठता है, जैसे शब्द सुनता है और जैसा देखता है, वैसा-वैसा प्रभाव धीरे-धीरे उसके जीवन पर पड़ता है। एक सीधी-सी कहावत है- 'काळे कने गोरो बैठे, रंग नीं तो लखण जरूर लेवे।' यानी दो व्यक्ति यदि पास में बैठते हैं तो उनके रंग भले ही एक-दूसरे में परिवर्तित न हों, पर उनका ज्ञान, अक्ल, बुद्धि एक दूसरे को जरूर प्रभावित करते हैं। जैसी संगत, वैसीरंगत। यदि व्यक्ति प्रतिदिन आकाश को निहारता है तो उसमें आकाश साकार होने लगता है और यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन चाँद-तारों को निहारता है तो उसके भीतर चाँद-तारे उससे बातें करने लगते हैं। यदि तुम लगातार गीत सुनते हो तो तुम्हारे भीतर गीत गुंजायमान होने लगते हैं। यदि तुम लगातार फूलों को निहारते हो तो तुम्हारे अन्दर भी फूल खिलने लगेंगे।
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