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संत स्वयं तीर्थ स्वरूप
संन्यास लेते हैं और सिंह की तरह पालन किया करते हैं। तीसरे वे जो सिंह की तरह संन्यास लेते हैं और सियार की तरह पालन करते हैं। चौथे वे जो सियार की तरह संन्यास लेते हैं और सियार की तरह ही पालन करते हैं ।
पहली प्रकृति के वे लोग होते हैं जो जिन विरक्ति के भावों के साथ संन्यास की दहलीज पर कदम रखते हैं और उन भावों को आजीवन बनाए रख कर अपनी स्वस्ति और मुक्ति को साधते हैं। दूसरी प्रकृति के वे लोग हुआ करते हैं जो किसी की प्रेरणा से, किसी के चढ़ाने से संन्यास ले लिया करते हैं, पर चारित्र के बाद अपनी मुक्ति के लिए किसी सिंह की तरह पराक्रम और पुरुषार्थ करते हैं। तीसरी प्रकृति के वे लोग रहते हैं जो वैराग्य भावों से ओतप्रोत होकर सन्त तो बन जाया करते हैं, पर बाद में वे लोकैषणा और संसार की मोहमाया में फँस जाते हैं। चौथे वे लोग होते हैं जो खाने-पीने के लिए ही दीक्षा लेते हैं और खाते-खाते संसार से विदा हो जाया करते हैं । वे भुक्खड़ होते हैं । सन्त का वेश उनके लिए आजीविका का साधन भर होता है । चार प्रकार से सन्त- जीवन का उपयोग किया जाता है। कुछ लोग इहलोक के लिए संन्यास ले लिया करते हैं । सोचते हैं, कुछ कमानाधमाना नहीं पड़ेगा, रोज खाने को आराम से मिल जाया करेगा। बस, साल में एक-दो बार बाल ही तो तुड़वाने पड़ेंगे या पैदल चलना पड़ेगा। बाकी तो बस, ऐशो आराम है। ऐसे लोगों के लिए कहावत है—
गुरांसा चाल्या गोचरी, और घोटो बाज्यो घम्म । श्रावकां री छाती फाटी, आयो डाकी जम्म॥
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बस, ऐसे महाराजों का एक ही काम होता है बड़ी सारी झोली भर कर गृहस्थों के घर से खाना-पीना ले आना और मजे मारना। ऐसी प्रकृति के लोग खूब खाएँगे - पीएँगे, चीलम - मस्ती करेंगे और भाँग पीएँगे। भला जो चीज गृहस्थ के लिए भी निषिद्ध है, उसे सन्त लोग किस हक से उपयोग कर रहे हैं? साधुता का निवास कोरे वेश बाने में नहीं अपितु त्याग और सच्चरित्रता में है ।
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दूसरे लोग वे होते हैं जो परलोक के लिए दीक्षा लिया करते हैं। वे सोचते हैं कि यहाँ तो नरक के समान दुःखों को भोग रहे हैं अतः अपना शेष जीवन पवित्रता से साधनामय बिताया जाए ताकि मरने के बाद ऐसी किसी नरक में जन्म न लेना पड़े। तीसरे प्रकार के वे लोग होते हैं जो इहलोक और परलोक दोनों का ही हि साधने के लिए दीक्षा लिया करते हैं। पर कुछ लोग ऐसे भी हुआ करते हैं जिनका सम्बन्ध न तो इस लोक से होता है और न ही परलोक से। वे मात्र अपनी मुक्ति के
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