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मार्ग तथा मार्गफल
१०९ गमन हो। बोरी चाहे शक्कर की हो या रेत की, भार तो दोनों ही है। त्याग की प्रधानता हो, न कि भोग की। निर्जरा की भावना ही हमें सुगति और सद्गति की
ओर ले जाएगी। ___ गति और स्थिति के प्रयत्न प्रतिदिन हों। प्रतिदिन व्यक्ति सांझ ढलने पर विचार करे कि मेरे द्वारा क्या शुभ हुआ है और क्या अशुभ ? शुद्ध की तरफ मेरे द्वारा कदम किस प्रकार बढ़े ? जहाँ व्यक्ति गति और स्थिति दोनों के लिए ही सजग है, वहाँ उसकी दृष्टि सम्यक् होती है। मार्ग यही है जिसे सभी ने जिया है। वह है दर्शन-ज्ञान और चारित्र का मार्ग। फर्क बस इतना ही है कि मार्ग को आज हमने पलट दिया है। आज पहले चारित्र लिया जाता है, फिर ज्ञानार्जन किया जाता है
और उसके बाद सम्यक् दर्शन पर ध्यान दिया जाता है। ___ हम फिर से महावीर के मूल मार्ग को समझ लें । वह मार्ग है दर्शन-ज्ञानचारित्र का। यही वह मार्ग है जिस पर चलकर मार्गफल पाया जा सकता है। मार्गफल यानी निर्वाण और मुक्ति।
आज के लिए अपनी ओर से इतना ही।
नमस्कार।
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