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मार्ग तथा मार्गफल
आगे जाती है, पर पहाड़ तो बहुत बड़ा है और एकदम घुप्प अंधेरा है, मैं कैसे जा पाऊँगा?' मैंने उससे कहा, 'अरे, तू अपने कदम आगे बढ़ा तो सही, तेरे आगे बढ़ने के साथ-साथ रोशनी भी आगे बढ़ती जाएगी।' जो इस डर से आगे नहीं बढ़ते कि लालटेन या मोमबत्ती की रोशनी कुछ कदम आगे तक ही प्रकाश कर पाएगी, उनके रास्ते सदा अंधकारमय ही बने रहते हैं। ___ मार्ग तो प्रशस्त उनका होता है जो आगे बढ़ने से नहीं घबराते। चट्टानें तो उनके रास्ते की धराशायी होती है जो अवरोधों से डरते नहीं हैं। संभव है कि जो चट्टान दूर से बहुत बड़ी मुसीबत लगरही हो, नजदीक जाने पर वह कंकर के समान तुच्छ लगे। मूल बात है समग्रता की। मंजिल तक पहुँचने के लिए समग्र पुरुषार्थ चाहिए। एकाग्रता से एक ही मार्ग का चयन और उस पर समग्रता से कदम-दरकदम बढ़ाए जाएँ तो मंजिल स्वयं ही करीब आ जाती है।
मार्ग का चयन तो व्यक्ति को स्वयं ही करना होगा। आज व्यक्ति त्याग और भोग का मज़ा साथ-साथ लेना चाहता है। किसी तीर्थ-स्थल पर गए और सोचा कि रोज मैं बीस सिगरेट पीता हूँ, आज से दस ही पीऊँगा। छोड़ना ही है तो पूरा छोड़ो, यह क्या कायरों की प्रवृत्ति ! आज प्राय: व्यक्ति ऐसी कार में सवार है, जहाँ उसका एक पाँव तो ब्रेक पर रखा है और दूसरा पाँव एक्सीलरेटर पर। वह दोनों को साथ-साथ दबाना चाहता है।
आदमी की स्थिति कितनी विडंबनापूर्ण हो गई है, बिल्कुल त्रिशंकु की तरह। वह न तो आसमान के चाँद-तारों को छू पाता है और न ही धरती पर खिले सुंदर फूलों से प्यार कर पाता है। हम परखें कि क्या हमारा धर्म-कर्म या अध्यात्म भी अधर में लटका हुआ तो नहीं है? मंजिल पाने के लिए कुनकुने प्रयासों से काम नहीं चलेगा। ____सर्वप्रथम व्यक्ति यह निश्चय करे कि वह क्या चाहता है स्वर्ग, मोक्ष या फिर संसार ? स्वर्ग के मार्ग पर चलने से मोक्ष की मंजिल नहीं मिल सकती और मोक्ष की मंजिल को पाने के लिए संसार या स्वर्ग की राह पर चलना भी नादानी है। पहले आप यह निश्चय तो करें कि आप आगे भी क्या यही पत्नी चाहते हैं या कोई स्वर्ग की अप्सरा या इन दोनों ही से दिल भर गया है और सबसे मुक्ति चाहते हैं ? अगर यही पत्नी चाहते हैं तो उसका मार्ग अलग है, अप्सरा चाहते हैं तो उसका मार्ग भी अलग है और मुक्ति या निर्वाण चाहते हैं तो उसका मार्ग भी अलग है।
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