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________________ मार्ग तथा मार्गफल मार्ग पर आई हुई व्यर्थ आडंबरजनित क्रियाओं का उन्मूलन कर सके तथा धर्म का स्वरूप वैज्ञानिक ढंग से प्रशस्त कर सके। इन तीनों पंथों या संप्रदायों का उद्देश्य तो व्यक्ति को यह संदेश देना था कि व्यक्ति विवेक की आँख खोलकर सही मार्ग पर चले। पर आज तो हर आँख में कदाग्रह की कंकरी है और उस पर मिथ्यात्व की पट्टी बंधी हुई है। हर आँख को प्रभुत्वशाली हाथों ने दबा रखा है जिसके कारण व्यक्ति यह जान ही नहीं पा रहा है कि जिस मार्ग पर वह चल रहा है, वह सम्यक्त्व का मार्ग है अथवा संकीर्णता का मार्ग। आदर्श मार्ग तो वह है जो व्यक्ति को संकीर्ण पगडंडियों से निकालकर राजमार्ग की तरफ ले जाए। वह मार्ग सन्मार्ग कदापि नहीं हो सकता जो व्यक्ति को राजमार्ग से संकीर्ण पगडंडियों की तरफ धकेले। संकीर्णता व्यक्ति के लिए अभिशाप है जबकि उदारता शुभाशीष। आज हम महावीर के कुछ ऐसे सूत्रों पर चर्चा करेंगे जो व्यक्ति को महावीर के मूल मार्ग की तरफ ले जाएँ और उनके वैज्ञानिक संदर्भो को भी प्रकट कर सकें। सूत्र है मग्गो मग्गफलं ति य, दुविहं जिणसासणे समक्खादं। मग्गो खलु सम्मत्तं, मग्गफलं होइ णिव्वाणं॥ भगवान कहते हैं, 'जिनशासन में 'मार्ग' तथा 'मार्गफल' इन दो प्रकारों से कथन किया गया है। मार्ग मोक्ष का उपाय है। उसका फल 'निर्वाण' या 'मोक्ष' है।' महावीर जीवन और जीवन के मार्ग की पूरी वैज्ञानिक व्याख्या करते हुए कहते हैं कि धर्म के अनुशासन में दो ही बातें कही गई और वे हैं मार्ग और उसका मार्गफल। जो मार्ग पर चलेगा, उसे मार्गफल अवश्य मिलेगा। केवल मार्ग पर बैठे रहने से, धूप-दीप करने से या उसकी जय-जयकार करने से मार्गफल की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती। मंजिल उन्हें मकसूद नहीं होती जो राहों को पार करने से डरते हैं। मंजिलें तो उनके कदम चूमती हैं जो उन राहों पर चलने को तैयार होते हैं जो उन्हें मंजिल तक पहुँचाएँ। यदि व्यक्ति राह पर बैठकर ही राह के गुणगान करता रहे कि यह राह तो मंजिल तक ले जाने वाली है या राह के चढ़ावे बोलता रहे तो उसे मंजिल कभी नहीं मिल सकती। यही कारण है कि आज तक फिर कोई महावीर नहीं हो पाया। . 'अंधो अन्धा ठेलई, दोऊ कूप पड़त', ले जाने वाले भी अंधे और जो जा रहे हैं वे भी अंधे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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