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जागे सो महावीर
और मनोवैज्ञानिक व्याख्या की है। दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी.एस. कोठारी, पंडित सुखलाल, दलसुख मालवणिया, डॉ. नेमीचंद जैन आदि इस दौर के कुछ ऐसे विशिष्ट व्यक्ति रहे हैं जिन्होंने महावीर के सिद्धांतों के मर्म को समझकर उनकी इस प्रकार वैज्ञानिक व्याख्याएँ की हैं कि आने वाली पीढ़ियों तक उनके सिद्धांतों की उपयोगिता बनी रहेगी।
मेरी समझ से आज महावीर के सिद्धांतों के वैज्ञानिक संदर्भ को घर-घर पहुँचाया जाना चाहिए। महावीर का मार्ग पूर्णतया वैज्ञानिक मार्ग है। खेद की बात तो यह है कि आज महावीर के अनुयायियों के हाथों में जो मार्ग है, वह महावीर का मार्ग कतई नहीं है। वे तो महावीर के मार्ग पर फैल चुकी वे सारी बातें हैं जिनकी प्ररूपणा महावीर ने कतई नहीं की थीं। महावीर तो अंधविश्वासों तथा आडंबरों के विरोधी रहे। वे तो त्यागप्रधान पुरुष थे। उनके द्वारा वे बातें कभी नहीं कही गई जिन बातों को हम आज ग्रहण कर चुके हैं।
आज से करीब हजार वर्ष पूर्व जब महावीर के धर्म का स्वरूप विकृत हो गया तो सबसे पहले उसके विरोध में शंखनाद करने वाले आचार्य रहे जिनेश्वर सूरि। उस क्रांतिकारी आचार्य ने लोगों के समक्ष यह प्रस्तुत किया कि महावीर का मूल धर्म क्या था और हमने धर्म के नाम पर किस बाने को पहन रखा है ? दूसरे क्रांतिकारी पुरुष रहे वीर लोंकाशाह जिनसे स्थानकवासी परंपरा का जन्म हुआ। उन्होंने देखा कि महावीर के मार्ग पर किस तरह आडंबरों और अंधविश्वासों ने डेरा जमा लिया है। दूसरी परंपराओं के प्रभाव से महावीर का मूल मार्ग तो आदमी के हाथ से छिटक ही गया है। मैं उस क्रांतिकारी आचार्य लोकाशाह को नमन करता हूँ जिन्होंने महावीर के मार्ग पर आई हुई व्यर्थ की रूढ़ियों एवं प्रथाओं की धूल को साफ करने का प्रयत्न किया। ___ जिस तीसरे व्यक्ति को मैं क्रांतिकारी पुरुष के रूप में देखता हूँ वे हैं, आचार्य भिक्षु जिन्होंने तेरापंथ का प्रवर्तन करते हुए धर्म में रूढ़ियों एवं कुप्रथाओं का विरोध किया। आज तीनों ही पंथ चाहे वह मंदिरमार्गी हो, स्थानकवासी या तेरापंथी हो, सब महावीर के मूल मार्ग से स्खलित हो गए हैं। इन तीनों संप्रदायों का अभ्युदय मानव-कल्याण के लिए हुआ था, पर वह उद्देश्य कहीं दूर ही छिटक गया। आज सभी हवा के साथ बह रहे हैं। सभी लोक-लुभावने तरीकों का उपयोग कर रहे हैं। आज आवश्यकता किसी ऐसे चौथे क्रांत-पुरुष की है जो महावीर के
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