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________________ मार्ग तथा मार्गफल कुछ वर्ष पूर्व दूरदर्शन ने मेरे एक इंटरव्यू का राष्ट्रीय प्रसारण किया था, नवभारत टाइम्स के सम्पादक अक्षयकुमारजी ने यह इटरव्यू लिया था। जिसमें मैंने महावीर के नि:शस्त्रीकरण की बात रखी थी। उस बात से लोग चौंक उठे कि क्या नि:शस्त्रीकरण महावीर द्वारा प्रतिपादित है? आज से हजारों वर्ष पूर्व महावीर ने वनस्पति-जगत् में भी जीव के अस्तित्व की बात कही तो उनके अनुयायी भी इस बात को पूरी तरह समर्थित और प्रमाणित नहीं कर पाए, क्योंकि उनके पास विज्ञान के साधन नहीं थे । पर वही बात वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु ने अपने आधुनिक उपकरणों से सिद्ध कर दिखाई। उन्होंने लोगों के सामने वनस्पति में भी जीवन के अस्तित्व को प्रस्तुत किया। प्रकट रूप से आज एक छोटा-सा बच्चा भी यह कह सकता है कि एक पेड़ को काटना या एक फूल को बेवजह तोड़ना एक हिंसापूर्ण कृत्य है। आज आवश्यकता महावीर के मंदिर बनाने की शायद उतनी नहीं है जितनी महावीर के सिद्धांतों, तथ्यों और बातों की वैज्ञानिक प्रस्तुति की है। महावीर द्वारा पानी को उबालकर या छानकर पीने की बात कही गई और जब इस बात की वैज्ञानिक संसिद्धि हो गई तो महावीर के समर्थकों को इस बात के प्रचार-प्रसार की कोई आवश्यकता नहीं रही । वरन् यह बात संपूर्ण विश्व के लिए स्वयं ही अनुकरणीय और समर्थनीय हो गई । यदि आपका बेटा आज रात्रि में भोजन करता है तो ऐसा नहीं है कि इसका कारण उसकी कोई बहुत बड़ी मजबूरी है। सच तो यह है कि महावीर के इस तथ्य के पीछे छिपी वैज्ञानिकता को सिद्ध करने में हम आज भी पूरे सफल नहीं हुए हैं । ९५ 2 मूल्य व महत्त्व महावीर के विचारों, सिद्धान्तों तथ्यों और बातों के प्रचार या प्रसार का नहीं है, बल्कि मूल्य है उनके वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक प्रस्तुतिकरण मैं अगर अपनी ओर से कोई बात कहता हूँ तो इस बात का ध्यान रखता हूँ कि उस बात को सिद्ध करने के लिए किसी शास्त्र का उदाहरण न दूँ। मैं उसी बात को कहता हूँ जो मैं जी सकूँ या जिसे एक आम आदमी जी पाए । शास्त्रों की ऊँचीऊँची बातें कहने या कहलवाने का क्या औचित्य जब उस बात को कहने वाला व्यक्ति ही स्वयं उस बात को आचरित न कर सके ? बात तो वह हो जो एक आम आदमी के गले उतर सके और जिसे वह सहजतया आचरित कर सके । हाँ, महावीर के अनुयायियों में भी कुछ ऐसे वैज्ञानिक हुए हैं जिन्होंने उनके सिद्धांतों की वैज्ञानिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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