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जागे सो महावीर
- आत्म-दृष्टि रखने वाला व्यक्ति स्व को स्व जानता है और पर का पर। गुजराती में एक प्यारा सूत्र है-'स्व मां वश, पर थी खस, ऐटलुं बस।' यानि अपने में बसो, पर-भाव से ऊपर उठो, भेद-विज्ञान का यही सार-संदेश है। 'सहजात्म स्वरूप परम गुरु।' आत्मा का सहज स्वरूप ही व्यक्ति का श्रेष्ठ गुरु है। सहज स्वरूप ही व्यक्ति का मंदिर है। सहज स्वरूप ही व्यक्ति का तीर्थ है। अपने सहज स्वरूप में निमग्न होना ही श्रेष्ठ तीर्थयात्रा है। आत्म-स्वीकृति, आत्म-बोध
और आत्म-रमण। निर्वाण-पथ के यही तीन रत्न हैं, मील के पत्थर हैं, प्रकाशस्तम्भ हैं।
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