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________________ योग इसीलिए ज़रूरी है कि हमारे इस उखड़ते, भटकते, उद्वेलित होने वाले मन और चित्त को हम शांत कर सकें। जब हम योग की शरण में आ रहे हैं तो समझ लेना चाहिए कि निरोध ही योग है। पतंजलि के अनुसार चित्त की तीन अवस्थाएँ होती हैं। सुषुप्ति, स्वप्न और जागृति। सुषुप्ति अर्थात् निद्रावस्था, स्वप्न अर्थात् भटकाव अवस्था और जागृति अर्थात् सजगता। मनुष्य या तो नींद में रहता है या सपनों में, विचारों में खोया रहता है या फिर जागृत रहता है। चौथी अवस्था भी होती है जिसे मैं 'परा' कहूँगा यानी वह स्थिति जो इन तीनों ही वृत्तियों से ऊपर उठ गई। उसे निवृत्ति कहेंगे।जो चित्त सुषुप्ति,स्वप्न और जागृति तीनों ही अवस्थाओं से ऊपर उठ गया है - महावीर की भाषा में जो शुक्ल ध्यान की अवस्था में पहुँच गया है- वह स्थिति परा है। परा अर्थात् परम अवस्था। परा अर्थात् मानवीय प्रकृति से ऊपर उठ जाना। सुषुप्ति यानी खोया हुआ है अपने में, अपने मोह, मूर्छा, निद्रा में, प्रमाद में। स्वप्न यानी भटकता रहता है। नींद में तो स्वप्न आते ही हैं दिन में भी सपने दिखाई देते हैं, जो नहीं हो पा रहा उसके सपने। तीसरी है जागृति - यह साधक अवस्था है। साधक को सजगता ही तो चाहिए। स्वस्थ और सफल जीने का आधार ही सजगता है। अपने प्रत्येक कार्य को जागरूकता-पूर्वक सम्पादित करना ही योग है। चलनाउठना-खाना-पीना सोना सब जागरूकता के साथ संपन्न हो। महावीर इसीलिए तो कहते हैं - जतन से जिओ। उनके सम्पूर्ण जीवन का सार उपदेश यही है - यत्न से जिओ, जागरूकता से जिओ। जैन का अर्थ है जतन से जीने वाला। जैन वह है जो जतन से, जागरूकता से जीता है। जो बोधपूर्वक जीता है वह है बौद्ध । जो मन के आत्मविश्वास को कायम रखते हुए जीता है, अपनी हीन-भावनाओं को दूर करके जीता है, उसका नाम है हिंदू ।ईमान पर जो अडिग रहे वह मुसलमान। ईश्वर के पथ का जो अनुसरण करता रहे वह ईसाई। जो अपने गुरुजनों के सान्निध्य में बैठ कर जीवन की श्रेष्ठ बातें सीखता रहे वही सिक्ख। अगर गुण के रूप में हिंदू, जैन, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई आदि शब्द जुड़े हैं तो ये सार्थक हैं अन्यथा केवल पहचान भर हैं। जीवन में चाहिए जागृति। सुषुप्ति-स्वप्न दोनों ही मूर्छा-अवस्था हैं। जो जागता है, वह पाता है। जो सोता है, सो पछताता है। कहते हैं : तीन मित्र घूमने के लिए जाते हैं, दिनभर पिकनिक मनाते हैं और रात में वहीं रुक जाते हैं। शाम के समय खीर बनाते हैं और पेट भर खाने के पश्चात् भी एक कटोरा खीर.बच जाती है। तीनों ने विचार किया कि इसे ढककर रख देते हैं, सुबह उठ कर इसी का नाश्ता करेंगे और | 39 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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