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________________ घर लौट जाएँगे। खीर रख दी गई। रात में तीन-चार बजे होंगे कि एक मित्र को भूख लगी। वह उठा, सामने खीर का प्याला और पेट में भूख। अब तो रहा नहीं गया, उसने कटोरा उठाया और खीर पी गया। कटोरा ढककर रखा और पुनः सो गया। सुबह जब सब जगे तो प्रश्न उठा कि पहले खीर कौन पिये? क्योंकि सभी पीना चाहते थे। एक ने कहा मैं पिऊंगा। क्यों? क्योंकि आज रात मैने गजब का सपना देखा - मैंने देखा कि भगवान शिव मेरे सपने में आए और कहने लगे चल मैं तुझे अपने साथ हिमालय पर ले चलता हूँ। मैं वहाँ गया पार्वती माँ ने अपने पास रखा हुआ खीर का कटोरा उठाया और मुझे पिलाया इसलिए इस कटोरे की खीर पर मेरा अधिकार दूसरे मित्र ने कहा - सपना तो मुझे भी आया और मेरा सपना तेरे सपने से ज़्यादा ऊँचा था। दोनों मित्रों ने पूछा - तेरा क्या सपना था? कहने लगा - राजा दशरथ ने घोषणा कर दी थी कि राम का राज्याभिषेक होगा, लेकिन राम तो जंगल चला गया, सो उन्होंने मुझे ही राम समझ लिया और मेरा राज्याभिषेक कर दिया और अभिषेक करते समय मेरे सामने खीर का कटोरा रखा और कहा - पी जाओ। इसलिए तेरे सपने से मेरा सपना बेहतर है और इस खीर का अधिकारी मैं ही हूँ। तीसरे मित्र ने कहा - निश्चय ही तुम लोगों के सपने ही महान हैं। मुझे इस प्रकार का कोई सपना नहीं आया, पर एक छोटा-सा सपना तो मुझे भी आया कि रात में हनुमानजी आए और गदा से धमकाते हुए बोले - उठ। डर के मारे मैं उठ गया। उन्होंने कहा - मारूँ क्या गदा से? मैंने कहा-क्या हुआ प्रभु? बोले उठा यह कटोरा और खीर पी। मैंने कटोरा उठाया और खीर पी गया। दूसरे दोनों मित्र चौंके- क्या मतलब? जो हुआ था सो मैंने बता दिया - तीसरे ने बताया- मैंने खीर पी ली। उन्होंने कटोरा देखा तो खाली था।सोचा - हम लोग फालतू के सपने गढ़ रहे थे यह तो सचमुच ही खीर पी गया। दोनों ने कहा - जब रात में हनुमानजी आए तो तूने अकेले ही खीर पी ली? हमें भी जगा देते। हम भी तो तुम्हारे दोस्त हैं, सब मिलबाँट कर पी लेते। उसने कहा - मैंने हनुमानजी से कहा था कि प्रभु मेरे साथ मेरे दो दोस्त और हैं, उन्हें भी थोडा-थोड़ा हिस्सा दे दें। हनुमानजी ने कहा- तुम्हारे दोस्तों में से कोई भी यहाँ नहीं हैं। उनमें से एक तो हिमालय गया हुआ है और दूसरा राम बनकर दशरथ के दरबार में घूम रहा है। अब मेरे पास कोई राणा नहीं था सो मैंने कटोरा उठाया और पी गया ! खीर किसे मिलती है- जो सजग होता है। जो सुषुप्ति और स्वप्न में रहते हैं 40 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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