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________________ छोड़ दें। शरीर, मन, प्राण सभी रिलेक्स। पाँच मिनिट तक पूर्ण विश्राम दशा में आ जाएँ। यह है प्राणायाम का क्रिया-योग जो लगभग दस-बारह मिनट का है। यह शरीर की समस्त प्राण-कोशिकाओं और उसकी प्राण ऊर्जा को सक्रिय करने में जबर्दस्त सहायक है। आप क्रियायोग के इन पाँच चक्रों को नौ चक्रों तक भी कर सकते हैं। प्राणायाम से हम प्राणवायु के द्वारा शरीर की प्राण-चेतना को चार्ज करते हैं। पूरे मन से प्राणायाम करके हमें उसके परिणाम प्राप्त करने होते हैं। मन लगाकर प्राणायाम करने पर हमारे अंदर ऊर्जा का जागरण, ऊर्जा का विस्फोट हो सकता है। इससे हमारे भौतिक व आध्यात्मिक दोनों शरीरों को लाभ होगा। कुंडलिनी शक्ति एवं षटचक्रों के जागरण में भी मदद मिलती है। ध्यान योगासन व प्राणायाम के बाद हम स्वयं को मनोयोगपूर्वक ध्यान के लिए समर्पित करेंगे। ध्यान का अर्थ है दिमाग को शांतिमय बनाना, मन को शांति और निर्मल स्थिति में विलीन करना। ध्यान के लिए हम स्वयं को सजग सचेतन करें। क्रियायोग करने से प्राणायाम और प्रत्याहार तो सध गए हैं। अब हम धारणा कर रहे है। संकल्प कर रहे हैं कि अब मैं स्वयं को ध्यान के लिए तत्पर कर रहा हूँ। हाथ की अंगुलियों में अंगुली फँसा दें और उन्हें गोद में रख लें। शरीर और दिमाग को पूरी तरह ढीला रखें। अपनी जागरूकता को, अपनी प्रज्ञा को श्वास-धारा पर केन्द्रित करें। हर श्वास में प्रवेश करते जाएँ, हर श्वास में डूबते जाएँ और अपनी सचेतनता नाभि-प्रदेश पर केन्द्रित करें। नाभि-प्रदेश पर ध्यान धरने से व्यक्ति का संपूर्ण तंत्रिका तंत्र स्वस्थ होता है । एकाग्रता बनती है। ध्यान का अर्थ है किसी एक बिंदु पर स्वयं को सजग करना । एक ही तत्त्व पर अपनी लय बनाना या लयलीन कर लेना।अपनी जागरूकता को, अपनी सचेतना को वहाँ पर केन्द्रित कर लेना। ध्यान है मन को लगाना। हम अपने मन को, अपनी बुद्धि को, जागरूकता को, बोध-दशा को, सचेतनता को, मानसिक शक्ति और मानसिक चेतना को कहाँ लगाएँ? अपने दिमाग़ को हम कहाँ लगाएँ? बुद्धि, सचेतनता, जागरूकता, बोध आदि सभी मन से जुड़े हुए हैं तब फिर हम इस मन को कहाँ लगाएँ? ध्यान में हम अपने मन को ऐसे ही भीतर उतारते हैं जैसे कुएं में बाल्टी। इसलिए मन को नाभि के भीतरी और बाहरी प्रदेश पर कायम करने का प्रयत्न करें। पहले चरण में तो ध्यान भटकता हुआ प्रतीत होता है, पर क्या अपने बचपन में | 29 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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