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________________ प्राणवायु ! प्राणवायु जीवन की, जगत की प्रत्येक गतिविधि को यहाँ से वहाँ पहुँचने में मददगार है । जब किसी ट्रक के टायरों में हवा भरकर कई टन माल लादा जा सकता है तो हम अपने शरीर के साथ भी वायु और प्राणवायु का प्रयोग करके अपने रोगी और बूढ़े होते जा रहे शरीर को पुनः दैदीप्यमान, कांतिमान, ऊर्जावान और आभायुक्त क्यों नहीं बना सकते? योग तो हमारे लिए प्राण-शुद्धि का ही एक चरण है। तीसरा काम जो योग करता है वह है मानसिक शुद्धि । मन के तनाव और चिंताएँ योग के द्वारा 30 से 40 प्रतिशत तक कम की जा सकती हैं। अगर हम योग के साथ उसके अन्य चरण ध्यान, प्राणायाम, आसन भी जोड़ लेते हैं तो जीवन को शांति और समरसता से भर सकते हैं। योग कोई एक नाम नहीं है, यह एक पूरा चक्र है । सत्य, अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य से लेकर, ध्यान, आसन, प्राणायाम से जोड़कर जो हमें धीरे-धीरे आगे बढ़ाता है, आत्मविश्वास जगाता है। आत्मविश्वास के संबंध में भाषण तो बहुत दिए जा सकते हैं, उदाहरण भी पेश किए जा सकते हैं कि गैलीलियो ने कम उम्र में ही झूलते हुए लैम्प का आविष्कार कर लिया था, शिवाजी ने केवल चौदह वर्ष की उम्र में किला फतह कर लिया था, कि वाशिंगटन ने उन्नीस वर्ष की उम्र में सेनापति का पद अख़्तियार कर लिया था। इन बातों को कहा तो ज़रूर जा सकता है पर इन्हें पाने के लिए जिस आत्मविश्वास की, जिस मनोबल की ज़रूरत होती है वह योग के द्वारा निश्चय ही पाया जा सकता है । जितना अधिक हम योग के संपर्क में रहेंगे जीवन के प्रति हमारी आस्था उतनी ही बढ़ेगी । - योग से मानसिक शुद्धि के साथ-साथ मानसिक शक्ति भी प्राप्त होती है । मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। अगर मन ही पंगु हो गया तो हमें पंगु होने से कौन बचा सकता है। जब तक मन सबल है तभी तक जीवन में विजय है । मन की सबलता से अस्सी वर्ष का डोकरा भी छोकरा है । योग हमारा संबंध आत्मा और अध्यात्म से, प्रभु के दिव्य प्रेम से जोड़ता है । इस तरह योग हमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर ले जाता है। शरीर और स्वास्थ्य से इसका शुभारंभ होता है, लेकिन वही बीज जब फलों से लदा हुआ वृक्ष बन जाता है तब ही उसकी पूर्णता है। जैसे अंकुरित होना बीज का पहला चरण है वैसे ही हमारा स्वस्थ होना पहला चरण है। धीरे-धीरे अंकुरण बढ़ता है, डालियाँ आती हैं, पत्ते निकलते हैं धीरे-धीरे वह बड़ा पेड़ होता है, कभी कोपलें फूटती हैं, कभी फूल आते हैं तब उनसे फल निकलते हैं । अब वह बीज अपनी परिपूर्णता पर पहुँच गया। योग की परिपूर्णता 20 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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