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________________ भी इसी में है कि व्यक्ति स्वास्थ्य से शुरुआत करता है, मानसिक शांति को उपलब्ध किया, दिमाग के तनाव और बोझों से मुक्त हुआ, आत्मा के साथ अपने संबंध जोड़े और शांति-समाधि तथा प्रज्ञा की सर्वोच्च स्थिति को उपलब्ध किया, यही योग की पूर्णता है। धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आय फल होय। होगा, सभी कुछ होगा। माली अगर धैर्य रखता है तभी तो बीज को फलों से लदे वृक्ष तक पहुँचाने में सफल होता है। हम भी अपनी आस्था के साथ धैर्य रखें तो पहले चरण में आरोग्य उपलब्ध होगा और आखिरी चरण में अध्यात्म का अमृत बरसेगा। बीज को रोज-ब-रोज खोदने पर वह अंकुरित नहीं हो सकेगा बल्कि सड़कर, सूखकर समाप्त हो जाएगा। प्रारम्भ में एक माह तक योग को जिएँ- स्वास्थ्य तक उसकी सीमा बाँध लें - कि अपनी काया को स्वस्थ करने के लिए योग का उपयोग कर रहा हूँ। उसका लाभ देखते ही अगले चरण में कदम रखें। दस प्रतिशत भी लाभ होने पर आस्थापूर्वक आगे बढ़ चलें। तब तन के साथ मन तक भी पहुँच सकेंगे। हमारे दिमाग में ही मन है, बुद्धि है, चित्त है, अहंकार है, क्रोध-कषाय है। आनंद भी दिमाग में है, प्रेम और शांति भी इसी दिमाग में निवास करते हैं। स्थूल काया को स्वस्थ करने के बाद दिमाग की ओर बढ़ें। दिमाग को ऊर्जावान बनाने के लिए, इसे सजग रखने के लिए, शांतिमय और प्रसन्न बनाने के लिए अगला कदम बढ़ाएँगे। धीरे-धीरे सारे परिणाम आएँगे। बस, पहला कदम उठाने की ज़रूरत है। हर मंज़िल का एक रास्ता होता है और हर मंजिल को पार करने के लिए कहीं-नकहीं से शुरुआत करनी होती है। शुरुआत वहीं से करनी चाहिए जहाँ हम आज खड़े डॉक्टर आपको रोगमुक्त कर सकता है, पर स्वास्थ्य नहीं दे सकता जबकि योग आपको रोग से ऊपर तो उठाएगा ही, प्रतिरोधक क्षमता भी प्रदान करेगा। योग ऊर्जा भी देता है जिसके कारण रोग कटते हैं और योग से हमारी देह में जो रासायनिक परिवर्तन होते हैं, ऊर्जा का जागरण होता है उससे रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है और रोगों में कमी आती है। योग का उद्देश्य महज रोग काटना नहीं, आरोग्य प्रदान करना है, स्वास्थ्य प्रदान करना है । वही व्यक्ति स्वस्थ हो सकता है जो रोगों से मुक्त होगा। | 21 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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