SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गरिमा प्राप्त करने की तृष्णा बढ़ती जाती है। मैं भी कभी इस चंगुल में फँसी थी लेकिन प्रभु - कृपा से मैं इस चंगुल से निकल गई और आज मैं तुमसे यह अनुरोध करना चाहती हूँ कि अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी माँ तुम पर गौरव कर सके तो तुम इन सारे प्रपंचों का त्याग करके, एक ऐसे एकांत स्थान पर चले जाओ जहाँ जाकर तुम जान सको कि जीवन का वास्तविक सत्य, ज्ञान और अंतिम लक्ष्य क्या है । यदि तुम ऐसा कर सको तो तुम्हारी यह माँ सहज ही तुम पर गौरव करेगी कि उसका पुत्र आत्मज्ञानी संत हुआ। - तुम्हारी माँ । अपना नाम लिखकर माँ ने एक वाक्य और लिखा — Never born, never died जब मैंने यह पढ़ा तो मुझे लगा कि यह पत्र केवल जीऊन के लिए नहीं था, बल्कि चन्द्रप्रभ को उसकी माँ ने लिखा था। साधना के प्रति रुचि थी ही, लेकिन इस ख़त ने अन्तर्दृष्टि को और गहरा बना दिया। तब यह दृष्टि आई कि सब लोगों के बीच रहते हुए भी एकांत कैसे साधा जाए, बातचीत करते हुए भी अपने मौन को कैसे बरकरार रखा जाए। सभी के साथ संबंध बनाते हुए अपनी ध्यान और समाधि को कैसे अखंड रखा जाए । भगवान महावीर ने कभी कहा था - इंसान नहीं जानता, वह कौन है, कहाँ से आया है और कहाँ जाना है। उसकी जानकारी इतनी ही है कि वह अमुक नगर में पैदा हुआ है, अमुक माँ-बाप की संतान है, उसका अमुक नाम है । अगर किसी से पूछा जाए कि वह कहाँ रहता है, तो वह किसी स्थान का नाम बता देगा। लोग मुझसे भी पूछते हैं कि मैं किस शहर या गाँव का हूँ। मेरे लिए यह बताना कठिन है कि मैं किस नगर या गाँव की बात करूँ और किस जन्म की बात करूँ । व्यक्ति नहीं जानता कि वह कौन है? वह तो इतना ही जानता है कि वह किसी की संतान है । वह यह नहीं जानता कि वह ईश्वर की संतान है, उसे तो इतना ही पता है कि वह किसी मातापिता की संतान है । यदि ईश्वर को जनक - जननी मान लिया जाए तो सारे प्रपंच ही समाप्त हो जाते हैं । सबका मालिक एक, सबका पिता एक, सबकी माँ एक । हम नहीं जानते कि हम इस पृथ्वी ग्रह पर कहाँ से आए हैं, किस दिशा से आए हैं, यह भी नहीं पता कि देह-त्याग के बाद किस लोक में जाएँगे । ज्ञानी, पल-पल का बोध करने वाला व्यक्ति भली-भाँति जानता है कि वह किसी प्रकाश- लोक से आया है और पुन: किसी प्रकाश-लोक में चला जाएगा । ज्ञानी अपने जीवन में वह पापकर्म नहीं बटोरता जो उसे अंधकार के लोक में ले जाए। प्रकाश के लोक से आने Jain Education International For Personal & Private Use Only | 145 www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy