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________________ - बस, तीन कदम.. धारणा, ध्यान, समाधि मेरे प्रिय आत्मन्! आज अपनी बात का प्रारंभ उस बात से करूँगा जिसने मुझे भी प्रभावित किया। झेन परम्परा में एक संत हुए हैं - जीऊन । कहा जाता है कि जापान में संत जीऊन का बहुत प्रभाव था। जीऊन विद्वान प्रवक्ता थे - लोग उन्हें सुनने के लिए अपने गाँव, अपने शहर में बुलाते थे। राजमहलों में भी वे सम्मानित किए जाते थे। एक बार उन्हें अपनी माँ का पत्र मिला जिसमें लिखा था - मेरे प्रिय पुत्र, तुम निश्चय ही मेरे यशस्वी पुत्र हो और मुझे तुम पर अत्यन्त गौरव है। मुझे खुशी है कि हम दोनों संन्यासी हैं। इन दिनों मुझे सुनने में आ रहा है तुम्हारा यश और गौरव निरन्तर बढ़ रहा है। एक दृष्टि से यह सब बहुत सुकून की बात है लेकिन क्योंकि मैं तुम्हारी माँ हूँ, मैंने तुम्हें जन्म दिया है इसलिए तुम्हारे हित-अहित के बारे में सूचित करना अपना दायित्व समझती हूँ। बेटा याद रखो ज्ञान प्राप्त करने की कोई सीमा नहीं है और न ही यश और सम्मान प्राप्त करने का कोई अंत है। ज्ञान और सूचनाएँ अनन्त हैं जिन्हें प्राप्त करने के लिए सौ जीवन भी कम हैं और यश तथा प्रसिद्धि ऐसे अंतहीन आकाश की तरह हैं कि इन्हें ज्यों-ज्यों इंसान प्राप्त करता है त्यों-त्यों यश, प्रतिष्ठा और 144| Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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