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________________ वाला अगर अंधकार के लोक में चला जाए तो इससे बड़ा अज्ञान और क्या होगा? अज्ञानी तो अंधकार से आता है और अंधकार में ही चला जाता है लेकिन ज्ञानी या अज्ञानी जो स्वयं को जानने के लिए जागरूक है, जगत को, तत्त्व को तत्त्वतः जानने के लिए जागरूक है वह अवश्य ही प्रकाश के लोक की ओर गमन करता है। यही इंसान की आत्मविजय है, सफलता है। ज्ञानी की यही ज्ञान-दशा है कि वह प्रकाश-लोक का पथिक बने, भले ही तमोगुण, तमस् उसे क्यों न घेर लें, चित्त के क्लेश-संक्लेश उस पर हावी हो जाएँ फिर भी वह स्वयं को अंधकार में आवृत्त नहीं करता, न ही उसमें डूबता है। माना कि हमारा जन्म भले ही दलदल में हुआ हो, पर हम उसके कीड़े न बनें बल्कि कमल का फूल बन जाएँ। यही सफलता है ज्ञानी की। सांसारिक सफलता तो धनी, सम्पन्न, समृद्ध बनने में है। संसारी व्यक्ति की सफलता अमीरी, धन-दौलत के आधार पर नापी जाती है, पर ज्ञानी की सफलता कीचड़ का कीड़ा नहीं बल्कि कीचड़ का कमल हो जाने में है। मुक्ति का कमल, अनासक्ति का फूल, आत्म-ज्ञान के अमृत का फूल बन जाना उसके जीवन की विशेषता है। पहला सोपान जानना है - ज्ञानीजनों के द्वारा कही गई पवित्र पुस्तकों के उपदेश, उनके द्वारा लिखी गई पवित्र किताबों का प्रकाश - जिसके द्वारा व्यक्ति जानता है कि वह वास्तव में कौन है, उसके जीवन का वास्तविक सत्य क्या है। दूसरा चरण है - ज्ञानी गुरुजनों के सान्निध्य में बैठकर जानने का प्रयत्न हो कि हमारे जीवनका वास्तविक सच क्या है, वह कौन है, कहाँ से आया है, किस अज्ञात लोक से आया है और किस अज्ञात लोक की ओर प्रयाण करेगा। उत्तर बीसवीं सदी के दार्शनिक संत ओशो ने अपनी समाधि पर जीवन के सत्त्व का बोध, आध्यात्मिक चिंतन का सार लिखवाने का प्रयत्न किया कि ओशो न कभी जन्मे, न कभी मरे। केवल इस तारीख से..... इस तारीख तक पृथ्वी-ग्रह पर रहे। यह बहुत महान् आध्यात्मिक चिंतन का सार है। जैसे कि संत जीऊन की माँ ने लिखा, ओशो ने लिखा - ऐसे ही हम सभी को बोध रखना चाहिए कि महावीर, बुद्ध, राम, कृष्ण, मुहम्मद, ईसा हम सब भी न कभी जन्मे, न कभी मरे ।केवल इतनी तारीख़ से इतनी तारीख़ तक पृथ्वी-ग्रह पर रहे। जब हम यह जान लेंगे तो हम मरेंगे नहीं,अमरता उसके चिंतन में भी रहेगी। यह अहंकार ही क्यों रखा जाए कि अमुक तारीख़ को स्वर्गवास हुआ या जन्म हुआ।अच्छा होगा कि यह परम्परा विकसित हो जाए कि जन्म और स्वर्गवास की तारीख़ लिखने के 146/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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