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________________ योग का अर्थ है जुड़ना। जैसे चिपकाने वाले पदार्थ का जोड़ कभी टूटता नहीं है, फेवीक्विक की तरह, वैसे ही योग का 'योग' कभी टूटता नहीं है। अधिक स्वस्थ, अधिक संतुलित, अधिक ऊर्जावान जीवन जीने की कला का नाम योग है। योग कोई पंथ-परंपरा नहीं है। योग तो जीने की कला है, बेहतर जीवन जीने का रास्ता है। योग मिन्स - ‘दवे आफ गुडलाइफ़'। __योग के कई मापदंड हैं। मनोयोगपूर्वक कर्म करना भी योग है, मनोयोगपूर्वक अध्ययन करना भी योग है, मनोयोगपूर्वक प्रेम और भक्ति करना भी योग है, मनोयोगपूर्वक सचेतन प्राणायाम और ध्यान करना भी योग है। और तो और, सुबह उठते ही माता-पिता के पाँव छूना भी योग है और किसी मदर टेरेसा की तरह इंसानियत की सेवा करना भी योग है। गीता में योग को इतना व्यापक कर दिया गया है कि आप मनोयोगपूर्वक किए गए किसी भी कार्य को योग कह सकते हैं। इस तरह योग जीवन है, ऊर्जा है, जीवन को उत्साह और उमंग से भरने की विधि है। जीवन को जीवन बनाए रखने का आधार योग है। हमें योग को, योग की अनिवार्यता को समझना होगा। किसी एक माह के बालक को देखकर आप कह सकते हैं कि वह हाथ-पाँव हिला रहा है, पर वह वास्तव में योग कर रहा है। जो विद्याध्ययन कर रहा है वह ज्ञान-योग को अपना रहा है। जो महिला गृह-कार्य में तन-मन से रत है वह सेवा-योग कर रही है। प्रभु की सजल नयनों से प्रार्थना करना भक्ति-योग है। निष्काम कर्म करना कर्मयोग है। यानी योग है तो जीवन की हर डगर पर सफलता है। बिना योग का जीवन अंधे के द्वारा अंधे को ठेलना है। योग यानी जागरूकतापूर्वक की जाने वाली क्रिया।इसलिए योग को कठिन न समझें। योग तो शरीर के संचालन जैसा ही सरल है। आप जानते हैं, अगर पाँव की हड्डी टूट जाए तो उसे पट्टा बाँधकर आराम दिलाया जाता है ताकि टूटी हुई हड्डी जुड़ जाए। पर हड्डी जुड़ने के बाद लंबे समय से पड़े शरीर को बिस्तर से बाहर निकलने पर उसका पूरा शरीर निष्क्रिय जैसा हो जाता है। तब व्यायाम के द्वारा उसके शरीर को पुनः हलन-चलन योग्य बनाया जाता है। फिजियोथैरेपी एक प्रकार का योग ही है। योग और व्यायाम से निष्क्रिय पड़ा इंसान भी सक्रिय हो जाता है। योग का कोई भी रूप अपनाया जा सकता है। और तो और, नृत्य करना भी एक योग है। मैं तो कहूँगा नृत्य करना एक संपूर्ण योग है। अगर आपको योग करने के विशिष्ट आसन नहीं आते या प्राणायाम में कैसे साँस ली या छोड़ी जाए यह भी न आता हो तो मैं सलाह दूंगा कि दस मिनट के लिए किसी संगीत का कैसेट चलाएँ और उसकी लय के आधार पर अपने अंग-संचालन शुरू कर दें।मस्ती से थिरकने लग जाएँ। यह दस 14 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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