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________________ उन्हें महान जीवन-दृष्टा के रूप में जाना है । वह व्यक्ति जीवन-दृष्टा होता है जो जीवन को हर कोण से, हर एंगल से बख़ूबी जानता है । जीवन की बारीकियों को अन्तस्तल से जानने वाले महान वैज्ञानिक, महान अनुत्तरयोगी का नाम महर्षि पतंजलि है। उनका प्रसिद्ध शास्त्र योग - सूत्र है जिसका प्रारम्भ ही चित्तवृत्तियों के निरोध से होता है । आज पूरे विश्व में योग का आभामंडल फैला हुआ है। योग जो कभी संन्यासियों के आश्रम और कुटिया में रहा करता था, आज वहाँ से बाहर निकल कर वह सर्वत्र व्याप्त हो गया है। यह वह मार्ग है, जिसे लोग समझ गए हैं कि अगर उन्हें स्वस्थ रहना है, तनावमुक्त, सदाबहार प्रसन्न और मधुर रहना है, आध्यात्मिक चेतना का मालिक बनना है, तो सभी को योग की शरण में आना ही होगा। हमें योग को भी वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में अपनाना होगा । सदा सर्वदा स्वस्थ और ऊर्जावान रहने के लिए हमें कल भी योग की ज़रूरत थी, आज भी है और जब तक यह सृष्टि रहेगी तब तक यह ज़रूरत बनी रहेगी । मैंने योग को जीवन के हर पहलू के साथ समझा है । आपने किसी तीन माह के बच्चे को देखा होगा, जो उसी तरह हाथ-पाँव चलाता है जैसे योग सिखाने वाले हाथ-पाँवों की साइकिलिंग करवाते हैं । ऐसे बच्चों को देखकर आपको लगेगा कि योग तो बिल्कुल प्राकृतिक है। योग कोई आरोपण नहीं है, यह तो हमारे जीवन की नैसर्गिक विधि है । प्रकृति से ही हम योग सीख कर आते हैं। जब तक इंसान योग के रूप में व्यायाम, प्राणायाम और ध्यान करता रहेगा वह अपने हाथों में उत्साह और उमंग का चिराग़ रखेगा। जिस दिन इंसान योग से विमुख होगा उसी दिन से वह वृद्धावस्था की ओर कदम बढ़ा बैठेगा । मेरे लिए तो योग जीवन का अमृत है और योग छोड़ देना रोग और मृत्यु को आमंत्रण है । जब तक व्यक्ति सक्रिय, सचेतन रहेगा तभी तक वह स्वस्थ रहेगा और स्वस्थ रहना अपने आप में योग है । स्वस्थ इंसान ही योगी बन सकता है। योग ह नहीं है जिसे करने के लिए कहीं बाहर हिमालय की गुफा में जाना पड़े और तपना पड़े। हो सकता है वह श्रेष्ठ योग हो, पर वह योग की अंतिम क्लास है । पहली क्लास तो स्वास्थ्य है। सच तो यह है कि जो स्वस्थ है वह प्रत्येक व्यक्ति योगी है। वृद्ध हो जाने के बावजूद जो मन में उत्साह और उमंग से भरा है वह योगी ही है । यदि पन्द्रह वर्षीय बालक रोगी, निराश, हताश है, जीवन की आशा छोड़ बैठा है तो वह बचपन बूढ़ा हो चुका है। यदि आप पचपन में भी ऊर्जावान हैं, तो बचपन आपकी गोद में अठखेलियाँ कर रहा है। आइए, हम समझें कि योग क्या है? T Jain Education International For Personal & Private Use Only | 13 www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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