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________________ प्रत्याहार की ओर ले जाने में सहायक हो, ध्यान में प्रवेश करने के लिए सहयोगी हो। सचेतनतापूर्वक प्राणायाम करने से अन्य दूसरी आवश्यकताएँ सिद्ध हो जाएँगी और केवल श्वास ही लेते रह गए तो जीवनी ऊर्जा तो जगा सकेंगे लेकिन चित्त को केन्द्रित करने में, मन की एकाग्रता प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकेंगे। किसी भी प्रकार का प्राणायाम चाहे कपालभाति हो, चाहे भस्त्रिका या अनुलोम-विलोम या अन्य कोई भी प्राणायाम हो, उनकी जितनी भी आवृत्ति जितने भी समय करें लेकिन होशपूर्वक, बोधपूर्वक श्वास का अनुभव करते हुए करें। दूसरी बात श्वास हमेशा गहरी लेनी चाहिए। गहरी श्वास ही मस्तिष्क से लेकर नीचे पाँवों तक अपना प्रभाव डालती है। सामान्य श्वास का प्रभाव हमारे फेफड़ों तक, उसके वायु-कोषों तक पहुँचाता है लेकिन गहरी श्वास का प्रभाव पूरी देह तक अनुभव किया जा सकता है। हालाँकि हवा फेफड़ों से आगे तक नहीं पहुँचती है लेकिन गहरी श्वास से श्वसन-तंत्र पूरे भराव में आता है और संपूर्ण देह में प्राणवायु का, प्राणचेतना का संचार होता है और सकारात्मक परिणाम प्राप्त होता है। इन्हीं से हमारे षट्चक्र, अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनन्दमय कोष भी सक्रिय होते हैं। इसीलिए गहरी श्वास लें। ऐसा नहीं कि प्राणायाम करते वक़्त ही गहरी श्वास लें, एक आदत बना लें। सामान्य जीवन में भी गहरी श्वास लेने की जब भी याद आ जाए गहरी श्वास ही लें। दसबारह गहरी श्वास भी हमारे निष्क्रिय, निष्प्राण, मायूस मन को सक्रिय करने में सहायक हो जाती हैं। गहरी श्वासों से हमारा शरीर, हमारी नाड़ी-संस्थान हमारा प्राणतंत्र, चेतना-तंत्र प्राणवायु के द्वारा संचालित, सक्रिय, सकारात्मक बनता है। सुबह तो प्राणायाम करते ही हैं, भोजन करने के पहले भी दस-बारह गहरी श्वास लें, लाभ मिलेगा।जब भी गुस्सा दिमाग पर हावी हुआ मालूम पड़े, दस-बारह गहरी श्वास ले लें। गहरी श्वास लेने से क्रोध रूपी ऊर्जा का विस्तार हो जाएगा और श्वास के द्वारा बाहर निकल जाएगा। गुस्सा या तो प्रगट कर देने से कम होता है और प्रगट करना उचित न लगे तो उसे भीतर रखें। अगर भीतर रखा तो वह कुंठा का कारण बनेगा, दमन का निमित्त बनेगा। दस-बारह गहरी श्वास लेने से वह पूरे शरीर में फैल जाएगा और क्रोध ठंडा हो जाएगा। जो भी मनोविकार हमारे ऊपर हावी होने जा रहे हों उन्हें गहरे श्वास-प्रश्वास द्वारा बाहर निकाल फैंकें। तब हम पाएँगे कि हमारी प्राणवायु ने हमारे मन, शरीर, दिमाग पर अपना सकारात्मक प्रभाव डाल दिया है। जब भी प्राणायाम करें उसे गहराई देने का प्रयास करें। प्राणायाम का तीसरा कारक है -लयबद्ध श्वास। श्वास-प्रश्वास एक लय के साथ हो। ऐसा न हो कि एक श्वास गहरी हो गई, दूसरी छोटी हो गई, तीसरी साँस 128 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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