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साधना की सच्ची कसौटी
जीवन कसौटियों से घिरा हुआ है। यों तो जन्म के साथ ही संघर्ष और
कसौटियाँ शुरू होती हैं, पर ज्यों-ज्यों व्यक्ति जीवन के रणक्षेत्र में उतरता है, त्यों-त्यों कसौटियाँ बढ़ती जाती हैं । कसौटियों के रूप बदल जाया करते हैं। स्वर्ण को तो कसौटी - पत्थर पर घिसकर उसकी शुद्धता जाँचते हैं, लेकिन किसी साधक की, मुनि की कसौटी क्या है ? उसकी साधना ही है जो साधक की मूल चेतना, क्षमता और सहनशीलता को प्रकट करती है ।
मैंने पाया है कि एक साधक, एक मुनि या अग्रगण्य को ही सर्वाधिक कसौटियों पर कसा जाता है। भगवान बुद्ध और भगवान महावीर जब राजमहलों में थे, पाँव में काँटा भी नहीं चुभा होगा लेकिन महलों का त्याग करते ही.....! आप जानते ही हैं कि ध्यानस्थ अवस्था में ग्वाला उनके कानों में कीलें ठोंक गया। अगर वे राजकुमार होते तो क्या ग्वाला कीलें दिखाने की भी हिम्मत कर सकता था ? सांसारिक व्यक्ति को कौन कसौटी पर परखता है ! यह तो केवल साधक के साथ ही होता है । क्या लोहा कभी कसौटी पर कसा जाता है? इसलिए साधक को साधना करते हुए जितनी दुविधाएँ, विपदाएँ आती हैं एक गृहस्थ पर इतनी नहीं आतीं।
साधना की सच्ची कसौटी
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