________________
साधना के मार्ग से साधक को विचलित करने के लिए कभी अनुकूल, कभी प्रतिकूल परिस्थितियाँ आती हैं; कभी प्रतिकूल उपसर्ग, कभी अनुकूल स्थितियाँ बनती हैं। साधना कसौटी के राजद्वार से गुजरती है और इस कसौटी पर खरे उतरने वाले व्यक्तित्व ही भगवत् तुल्य हो पाते हैं। आज भगवान जो सूत्र दे रहे हैं वे गौरीशंकर के शिखर को छूने वाले सूत्र हैं। जीवन की सामान्य व्यवस्थाओं की जानकारी तो हो चुकी है, अब साधना के मार्ग पर बढ़े चलो और आने वाले अवरोधों पर विजय प्राप्त करो। छोटी-छोटी बातों पर डाँवाडोल न हो जाएँ। यह साधना का मार्ग है, यहाँ दो कदम भी आगे बढ़ाए कि लोगों द्वारा काँटे ही बिछाए जाते हैं। यह तुम्हारे साथ भी होगा। अतीत हमें बताता है कि जिसने भी सत्य को जानने की कोशिश की या जानकर उसे प्रगट करने की कोशिश की, उसे जहर के प्याले ही दिए गए, उसे क्रॉस पर ही लटकाया गया, उसके पाँव पर अंगीठी जलाई गई, उसे नानाविध अपमानित किया गया। ऐसा होगा ही, क्योंकि सोना जब तक तपेगा नहीं कुंदन नहीं बन पाएगा। पानी जब तक खौलने को तैयार न होगा, भला भाप कैसे बन पाएगा। ___आज के सूत्र उस साधक के लिए हैं जो साधना के मार्ग पर चलना शुरू कर चुका है और आने वाली समस्त अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अडिग है। उसके अन्तरमन में अभीप्सा जग ही चुकी है परिनिर्वाण के अन्तिम चरण का स्पर्श पाने की। भगवान के सूत्र साधना की गहराई से जुड़े हैं। उनका आज का संदेश है कि साधक कैसा हो, उसके जीवन की क्या परिभाषा हो, उसकी जीवन व्यवस्था क्या हो कि वह साधक कहला सके और साधना के तत्त्व को उपलब्ध हो सके। सूत्र है
सीह-गय-वसह-मिय-पसु, मारुद-सूरूवहि-मंदरिदु-मणी। - खिदि-उरगवरसरिसा परम-पय-विमग्गया साहु ।। - भगवान से पूछा गया कि साधु कैसा होना चाहिए ? तब भगवान ने इन चौदह उपमाओं से युक्त व्यक्ति को साधु कहा, साधक कहा। सिंह-सा पराक्रमी, हाथी-सा स्वाभिमानी, वृषभ-सा भद्र, मृग-सा सरल, पशु-सा निरीह, वायु-सा निसंग, सूर्य-सा तेजस्वी, सागर-सा गंभीर, मेरु-सा निश्चल,
धर्म, आखिर क्या है ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org