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________________ आज के संत मात्र व्यवस्थाओं में ही अपनी ऊर्जा लगाते रहते हैं। उनके पास ध्यान और स्वाध्याय का समय ही नहीं है। क्या आप जानते हैं कि चार माह वर्षावास की व्यवस्था क्यों की गई ? चातुर्मास की अवधारणा ही यही है कि मुनि किसी एक स्थान पर रहकर आत्मध्यान कर सके। लेकिन आज स्थिति यह है कि बाहरी व्यवस्थाओं में उलझकर संत आत्मध्यान की स्थिति भूल चुके हैं। संत भी प्रतीक्षा करते हैं कि उनका अमीर भक्त आने वाला है। वे उसकी आकांक्षा के अनुरूप अपना कार्यक्रम निर्धारित करते हैं। यह एक कड़वा सच है, लेकिन सच कब तक छिपाया जाएगा। मुनि के लिए कहा गया कि वह प्रथम प्रहर में ध्यान करे, दूसरे प्रहर में स्वाध्याय करे, तीसरे प्रहर में अपने आहार-विहार और निहार की व्यवस्था करे और चौथे प्रहर में पुनः ध्यान में लीन हो जाए। भगवान ने कहा, जो ध्यान और स्वाध्याय में जीता है वही श्रमण है। पर आज संत जागरण का, होश का, ध्यान का मार्ग नहीं तलाश रहे हैं, फलस्वरूप खुद भी डूब रहे हैं और दूसरों को भी डूबो रहे हैं। जब तक ध्यान और स्वाध्याय मुनि-जीवन में नहीं उतरता उसका मुनित्व सार्थक नहीं हो सकता। मुझे अफसोस होता है जब मैं देखता हूँ जैन संत भी धनिकों को प्रश्रय देते हैं। सोचता हूँ कि श्रमण और श्रावक का संबंध भी धन पर निर्भर हो गया है। एक समय था जब मुनि गृहस्थ में श्रावकत्व देखा करते थे आज तो वे केवल धन देखते हैं। उनकी दृष्टि भी धन पर स्थिर हो गई है। ___मुझे याद है भारत से एक प्रतिनिधि मंडल ब्रिटेन गया। गलती से एक बिल्ली भी हवाई जहाज में घुस गई। प्रतिनिधि मंडल ने देखा, सोचा चलने दो भारत की बिल्ली है, वापस ले आएँगे। ब्रिटेन में एक सेमिनार का आयोजन था। उसमें ब्रिटेन की महारानी भी शिरकत करने वाली थीं। वे आईं और एक रत्नजड़ित सिंहासन पर आरूढ़ हो गईं। छः घंटे सेमिनार चला। सेमिनार के बाद प्रतिनिधि मंडल वापस आया, बिल्ली भी साथ आ गई। बिल्ली के हवाई जहाज से उतरते ही पत्रकारों ने बिल्ली से पूछा, 'तू छः घंटे सेमिनार में रही, बता वहाँ क्या देखा ?' बिल्ली ने कहा, 'मैंने तो ब्रिटेन की महारानी की कुर्सी के नीचे चूहा देखा। मैं नहीं जानती छः घंटे क्या हुआ, मेरी नजर तो उस चूहे पर टिकी थी। अब जिसकी नजर चूहे पर हो, वह छः घंटे क्या, छः साल तो क्या, छः जन्मों तक भी जिए, उसे चूहे के अतिरिक्त समझें, गृहस्थ के दायित्व 85 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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