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________________ बात का ! उपवास करने वालों से मिलने आएँ तो कम-से-कम उस समय तो मनोसंयम का परिचय आगन्तुक को ही देना चाहिए। यह भी उपवास करने वाले को नैतिक समर्थन देगा। अगर तुम्हारे घर में किसी के अठाई या मासक्षमण है तो आने-जाने वालों के मिठाई-नाश्ते की व्यवस्था में मन लग जाता है, अगर वास्तव में तपस्या का आनन्द लेना चाहते हो, तो पचास मालाएँ घर लाकर रख देना। जो भी कुशलक्षेम पूछने घर आए, उसे कहना लो भैया, एक माला नवकार मंत्र की जप लो। हाँ, इससे तपस्या करने वालों को भी तप की अनुकूलता मिलेगी और आने वालों को भी। अगर केवल नाश्ते-पानी में ही उलझ गये तो तपस्वी के तप में व्यवधान ही आएगा। __ तपस्या का मूल उद्देश्य अब समाप्त हो रहा है। अनाप-शनाप खर्चा, दिखावा-प्रदर्शन आदि पर हजारों रुपये खर्च कर दिए जाते हैं। और फिर कभी-कभी तो यह सब कुछ परिवार में क्लेश का कारण बन जाते हैं। किसी जगह तो ऐसा भी हुआ कि देवरानी-जेठानी दोनों ने एक साथ अठाई की। जेठानी का पीहर पक्ष समृद्ध था। वहाँ से सोने का हार आया और अन्य सामग्री भी आई। देवरानी के पिता सामान्य स्थिति के थे। उन्होंने अपनी हैसियत के अनुसार एक साड़ी भेजी। सास ने पचास जगह इसका जिक्र किया। बेचारी देवरानी का तो बुरा हाल हो गया। ऐसी स्थिति में सासससुर का फर्ज तो यह बनता है कि दोनों बहुओं के तप को मूल्य देते, न कि लेन-देन को। हमारे यहाँ तो भोजन करते हुए भी तपाराधना होने के उल्लेख मिलते हैं। जो अपनी इच्छाओं का नियन्ता है, जिसके कषाय शान्त हैं और जो समभावपूर्वक जीवन जीता है, उससे बड़ा तपस्वी कौन हो सकता है। प्राचीन घटना है। पयूषण के दिन थे। कोई तेले कर रहा था, तो कोई अठाई। किसी ने मासक्षमण किया। एक नए-नए मुनि बने युवक से रहा नहीं गया। वह संवत्सरी के दिन आहार-चर्या के लिए निकल पड़ा। किसी तरह, कहीं से जुगाड़ कर दो रोटी ले आया और गुरु को दिखाने लगा। गुरु यह देख तमतमा उठे और उसे खरी-खोटी भी सुनाई। युवा मुनि शान्त और समता में रहे। आहार स्वीकार करते समय उनकी आँखों में आँसू भर आए। इतने आँसू निकले कि जो काम मासक्षमण नहीं कर पाया, वह आँसुओं ने कर दिया। वे तप का ध्येय पहचानें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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