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________________ प्रायश्चित के आँसू थे। मुक्ति पाना इतना सरल है, यह तो पता ही न था। प्रायश्चित तो इतना पावन सरोवर है कि संवत्सरी के दिन रोटी खाकर भी साधक ने कैवल्य और आत्म-बोधि को उपलब्ध कर लिया। असली चीज है जीवन के प्रति सरलता, सजगता। भगवान कहते हैं-तप से आत्मा परिशुद्ध होती है। शरीर को तपाना तो पड़ेगा ही। जीवन के यथार्थ को हर पल याद रखना होगा। अपनी निरंकुश इच्छाओं पर अंकुश लगाना होगा। ऐसा न हो कि ऊपर से तो उपवास कर रहे हो और भीतर कुछ पाने की चाह बनी हुई है। तपस्या का सम्बन्ध बाह्य उपभोगों से न जोड़ें। अन्तर्मन से जोड़ने की कोशिश करें। भले ही तीस नहीं, एक ही उपवास करें, लेकिन वह ऐसा होना चाहिए जो स्वयं में आत्मसात् करने का सूत्र दे दे। उपवास का अर्थ है स्वयं में वास करना। उपवास यानी भीतर निवास करना। जो साधक संयमित रहने का संकल्प ले लेता है, वही जगत से मुक्त होकर रहता है। उपवास का अर्थ केवल इतना ही नहीं है कि भोजन नहीं किया जाए। उपवास का अर्थ है शरीर की प्रवृत्तियों से मुक्त होकर मनुष्य आत्मवास का संकल्प कर ले। आम तौर पर उपवास का मतलब यही है कि भोजन न लो। पर यह सीमित अर्थ है। उपवास को दो टुकड़ों में बाँटें-'उप' और 'वास' यानी अपने भीतर बैठना। उपवास का ही समानार्थक शब्द है उपनिषद, उपासना। उपनिषद, यानी भीतर उतरना। उपासना यानि अपने में अपनी बैठक लगाना। उपासना, उपवास, उपनिषद्-तीनों का लगभग समान अर्थ ही है। मनुष्य बहुत सौभाग्यशाली है कि तप के रूप में उसे जीवन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हुई है। तप तो कर्मों को धोने का एक साधन है। ध्यान रखें तपस्या केवल दैहिक नहीं होनी चाहिए। तपस्या में अन्तशुद्धि की कामना होनी चाहिए। तप करो तो मौनपूर्वक, कोई संवाद नहीं। लोग आएँ, संवाद करें, उन्हें करने दें। आप शान्त-तटस्थ हो जाएँ। उपवास करो तो पहले प्रहर में ध्यान करो, फिर स्वाध्याय। फिर विश्राम तथा सामायिक, प्रभुदर्शन आदि। ___मुनिजनों के लिए भी ध्यान-स्वाध्याय प्राथमिक है, पर आजकल मुनिजन श्रावकों से बातचीत करने से ही निवृत्त नहीं होते, साधना कब करें। धर्म, आखिर क्या है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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