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________________ ध्यान नहीं देता। हम किस तरह का भोजन मुनि-सन्तों को खिला रहे हैं। खुद तो अपना भला नहीं कर पा रहे, दूसरों को भी सही चीज नहीं दे पा रहे हैं। जब तक आहार शुद्ध न होगा, आचार शुद्ध कैसे होगा? जड़ ही सड़ने लगेगी तो पेड़ के पत्ते तो सूखेंगे ही। शुद्धि का विवेक ही चला गया है। भँवरा खुशबू की चाह में फूल की तरफ खिंचता चला जाता है, भले ही बाद में उसकी जान ही क्यों न चली जाए। आज आदमी का एक ही लक्ष्य रह गया हैखाओ-पीओ-मौज उड़ाओ। खाना ही महत्त्वपूर्ण हो गया है। लोग भूख से कम, अंट-संट और हानिकारक भोजन करके अधिक बीमार पड़ रहे हैं। गाँव के एक युवक का विवाह शहर की लड़की से हो गया। कुछ दिन बाद वह अपने मित्रों के साथ ससुराल गया। वहाँ जंवाई की खूब आव-भगत की गई। जब वे भोजन करने बैठे, तो उन्हें छोटी-छोटी गर्म पुड़ियाँ परोसी गईं। युवक तो गाँव का ही था, जवाई हुआ तो क्या ? वह एक पुड़ी को एक कौर के रूप में बनाकर खाने लगा। वहाँ बैठे लोग हँसने लगे। पत्नी बेचारी शर्म के मारे दूसरे कमरे में भाग गई। उसने कोने में खड़े होकर अँगुली से इशारा किया कि एक पुड़ी के दो टुकड़े करके खाओ। उस पति ने अर्थ लगाया कि दो पुड़ी एक साथ खाओ। और....भोजन-बुद्धि है ना। __असल में आदमी खाने में ही जीने का आदी हो गया है। संयम, शील, विनय-विवेक आदि गुण न जाने कहाँ छोड़ आया है। संयम और तप का तो हम अर्थ ही भुला बैठे हैं। भगवान कहते हैं तप से आत्मा शुद्ध होती है। कषाय मिट जाते हैं। तप का क्या अर्थ है, इसे भी समझना होगा। मान लीजिये आपको मक्खन पिघलाना है तो उसे सीधे चूल्हे पर थोड़े ही रख दोगे। उसे किसी बर्तन में डालना ही पड़ेगा। यहाँ उद्देश्य बर्तन को तपाना नहीं है, बल्कि मक्खन को पिघलाना है। इसी तरह आत्मा को तपाने के लिए शरीर एक साधन है। तप से ही आत्मा का शुद्धिकरण होता है। तपस्या का अर्थ है जहाँ इच्छाएँ समाप्त हो जाएँ। प्रायः होता यह है कि भूखे रहने की तपस्या तो काफी कर ली जाती है पर उसके पीछे छिपे उद्देश्य को भूला दिया जाता है। हमारे यहाँ चातुर्मास में तपस्या की होड़ लग जाती है और यह अच्छी बात है। पर क्या तपाराधना के साथ हम इन्द्रिय-संयम और कषाय-मुक्ति का लक्ष्य रख पाते हैं। हम तप का ध्येय पहचानें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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