SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मा ज्ञानमय है और ज्ञान आत्ममय। 'जे आया से विन्नाणि, जे विन्नाणि से आया' । जो विज्ञान है वही आत्मा है और जो आत्मा है वही विज्ञान। इसलिए आत्मा सर्वतोभावेन अज्ञान - दशा में नहीं आती । गहरी से गहरी अज्ञानमूलक दशा भी सूक्ष्मतम ज्ञानतंतु अवश्य रहता है। बच्चा नादान हो सकता है अज्ञानी नहीं । यह ज्ञान और अज्ञान ही कभी मनुष्यजीवन का विकास करता है और कभी ह्रास । उसका ज्ञान वैसे ही ढका हुआ है जैसे बादल सूरज को ढक लेते हैं । लेकिन उसका अस्तित्व फिर भी विद्यमान रहता है । ज्ञानी होने की सार्थकता जैसे यहाँ एक बल्ब जलाकर उसके चारों ओर पर्दे लगा दिए जाएँ तो भीतर का उजाला बाहर से कुछ दिखाई नहीं देगा । तभी एक परदा हटाया जाए तो भी तुम्हें कुछ दिखाई नहीं देगा। दूसरा पर्दा हटाने पर कुछ धुंधला-धुंधला नजर आ सकता है। तीसरा पर्दा हटाने पर कुछ जरूर महसूस होगा, हल्का-सा प्रकाश भी दिखाई देगा, पर स्पष्ट न हो सकेगा कि किसका प्रकाश है। चौथे पर्दे को हटाने के बाद आपको लगेगा कि कुछ जल तो रहा है, पर क्या है पता नहीं। अंतिम पर्दे को हटाने पर सबकुछ साफ हो गया। ज्ञान कहीं बाहर से पाने की आवश्यकता नहीं है, वह तो भीतर विद्यमान है, बस, परदे हटाने हैं। ‘मेरे घट ज्ञान भानु भयो भोर' । हमारे भीतर का ज्ञानं तब दब जाता धर्म, आखिर क्या है ? 56 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy