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________________ है जब उस पर आवरण आ जाते हैं। आवरण-मोह, मूर्छा, काम, माया, लोभ और क्रोध के आवरण। तब ज्ञानावरण और दर्शनावरण हो जाता है। मनोविज्ञान कहता है कि मनुष्य के मस्तिष्क में करोड़ों कोशिकाएँ होती हैं और उनमें से एक प्रतिशत कोशिकाओं का ही जीवन में उपयोग हो पाता है। अगर कोई व्यक्ति डॉक्टर बन गया तो इसका अर्थ यह नहीं कि उसकी सभी कोशिकाओं का उपयोग हो गया। वह वकील भी बन सकता था, वकील की कोशिकाएँ दबी रह गईं। इंजीनियर बनने की क्षमता भी थी, वे कोशिकाएँ भी दबी रह गईं, वह चाहता तो ज्ञानी अध्यापक भी बन सकता था। इस तरह हमें जो मानसिक क्षमता मिली है उसका बमुश्किल एक प्रतिशत उपयोग हो पाता है। अज्ञानी और नादान व्यक्ति भी अपने जीवन में ब्रह्मज्ञान उपलब्ध कर सकता है बशर्ते अपने मानसिक कोष को जगाने की क्षमता हो। विज्ञान में अनेक आविष्कार हुए, ऐसे आविष्कार कि हमारे पूर्वजों ने कल्पना भी न की होगी। क्या हमारे पूर्वज कभी टी.वी. और कम्प्यूटर के विषय में सोच सकते थे, लेकिन आज ये हमारे सामने हैं। इनका आविष्कार किसने किया ? विज्ञान के ये अद्भुत आविष्कार मनुष्य के मष्तिष्क की देन हैं। जैसे मस्तिष्क-विहीन शरीर निरर्थक होता है, वैसे ही आत्मज्ञान-विहीन मनुष्य अन्य कितना भी ज्ञान प्राप्त कर ले, बेकार ही रहता है। ___मनुष्य के पास ज्ञान नहीं, जानकारियाँ हैं। अमेरिका में एक युवक ने आत्महत्या कर ली और पत्र लिखा कि 'संसार की तमाम जानकारियाँ मैंने इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त कर ली हैं अब यहाँ जानने को कुछ नहीं रहा इसलिए दूसरे लोक में जा रहा हूँ, नई जानकारियाँ पाने के लिए।' हमारा जीवन क्या जानकारियों का कोष है ? हम अपनी मानसिक क्षमता का उपयोग केवल अपनी रुचियों की जगह पर ही करते हैं। ब्रह्मज्ञान किसी शंकर ने प्राप्त किया था तो यह न समझना कि इसकी क्षमता केवल उन्हीं के पास थी। महावीर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया, बोधिलाभ बुद्ध ने पाया तो यह मत समझना कि इसे तुम प्राप्त नहीं कर सकते। उन्होंने अपनी क्षमता का उपयोग किया, जबकि तुम्हारी क्षमता पर आवरण पड़ा हुआ है। तुम्हारे नाभिकेन्द्र के दो इंच नीचे और दो इंच भीतर ऊर्जा का भंडार है। जिसे ब्रह्मज्ञानी कुण्डलिनी कहते हैं। वहाँ अटूट शक्ति भरी हुई है। यह ज्ञानी होने की सार्थकता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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