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________________ अब यह आपके हाथ में है कि आप जीवन का कैसे उपयोग करते हैं, कर्म बाँधकर या कर्मों से मुक्त होकर ! देह यहीं रह जाने वाली है, परिवार, जमीन-जायदाद, सब यहीं छूट जाने वाले हैं। जो छूटना है, वह अवश्य छूटेगा। जो साथ चलना है, वह अवश्य साथ चलेगा। जो छूटना है, उसके साथ हम वैसे ही जिएँ, जैसे कमल जल के बीच रहता है। साथ में, मगर निर्लिप्त। हम भी ऐसे ही जिएँ संसार में । और, जो साथ चलना है, उस कर्म की निष्पापता पर, पुण्य-स्वरूप पर ध्यान दें । अशुभ से शुभ अच्छा है, पर शुद्ध होने के लिए तो अन्ततः शुभ से भी मुक्त होना होगा। अगर सर्वार्थ शुद्धि का उपक्रम हो सके, तो श्रेष्ठ, नहीं तो शुभ और पुण्य का तो दामन थाम ही लें, ताकि पापों की जंजीरों और काँटों का कष्ट न उठाना पड़े। पाप से पुण्य बेहतर है। धूप में खड़े रहने की बजाय छाया में खड़े रहना श्रेष्ठ है । मुक्ति वहाँ है, जहाँ सुख - दुःख की, पाप-पुण्य की धूप-छाँव नहीं है । परम शान्ति में, समता में, निर्लिप्तता में ही मुक्ति के बीज छिपे हैं । कर्म : बंधन और मुक्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only 55 www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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