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________________ निभाए। इसलिए भगवान ने कहा, 'अप्पा मित्तं अमित्तं च' जब तुम सत्ता में होते हो तब सब आदर करते हैं, तुम्हारे इर्द-गिर्द मँडराते हैं। लेकिन जब सत्ताच्युत हो जाते हो, तो कोई नहीं पूछता, बल्कि अपमानित भी करने लगते हैं। जब तुम संपन्न हो, तो तुम्हारी समझदारी की प्रशंसा होती है, लेकिन विपन्न हो तो समझदारी मूर्खता में परिणित हो जाती है। उगते हुए सूर्य को सभी प्रणाम करते हैं, डूबते हुए को कोई नहीं। एक फकीर चला जा रहा था। बहुत सुदर्शन व्यक्तित्व था उसका। एक वेश्या उस पर मोहित हो गई। वह वेश्या जिस पर नगर के प्रतिष्ठित और संपन्न व्यक्ति मरते थे। राजा भी, जिससे अनुराग रखता था, वह एक फकीर पर मोहित हो गई। उसने फकीर को आवाज लगाई, 'आओ मेरे यहाँ।' फकीर ने कहा, 'नहीं। वेश्या ने कहा, 'मेरे यहाँ आने के लिए स्वयं नरेश भी बेताब है और तुम इंकार कर रहे हो। फकीर ने कहा, 'मैं तब आऊँगा, जब तुम्हें वास्तव में मेरी जरूरत होगी। और वह चला गया। ___कालक्रम के अनुसार वेश्या जीवन-यापन करती रही। धीरे-धीरे वह रोगग्रस्त हो गई। उसे कुष्ठ रोग ने जकड़ लिया। वे राजकुमार और वे सेठसामंत जो उसके रूप पर भौरे की तरह मँडराया करते थे, वे अब आँखों से देख भी नहीं रहे थे। वह घर में सड़ रही थी। पड़ोसियों ने राजा से दुर्गंध की शिकायत की। तब वेश्या को उठाकर नगर से बाहर कचरे की ढेरी पर फेंक दिया गया। वह कोढ़ के रोग से तड़प रही थी कि अमावस्या की अर्धरात्रि में प्रकाश की तरह वह फकीर पहुँचा और बोला, 'लो मैं आ गया हूँ। उसने कहा, 'माफ करें, मेरे पास अब देने के लिए कुछ भी नहीं है। जब मैंने तुम्हें बुलाया था तब मेरे पास रूप और यौवन था, अब क्या दूँ ?' फकीर ने कहा, 'बस, तब तुम्हारा साथ निभाने वाले सब थे, अब मैं हूँ। और फकीर ने अपने ऊपर से कंबल उतारकर उसे ओढ़ा दिया तथा सात दिन तक प्रेम और प्रार्थना के साथ उपचार किया। वेश्या स्वस्थ हो गई। अब फकीर पुनः अपनी राह चल दिया और पीछे-पीछे वेश्या भी चली। वे भगवान के द्वार पर जा पहुंचे, फकीर ने भगवान को प्रणाम किया, वेश्या ने भी प्रणाम किया। भगवान ने पूछा, 'यह कौन ?' फकीर ने कहा, 'यह नई साधिका है प्रभु, इसे दीक्षित करें। और वहीं वेश्या साध्वी बन गई। धर्म, आखिर क्या है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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