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________________ बना। परिजनों ने कहा, 'तुम जो करते हो वे तुम्हारे कर्म हैं, इस पाप में हम भागीदार नहीं हो सकते। वाल्मीकि सन्न रह गया। कुल्हाड़ी वहीं फेंक आया और ऋषियों के चरणों में गिर पड़ा। ऋषियों ने उसे ज्ञान दिया ‘पत्नी, पुत्र, परिवार, सगे-संबंधी भी तुम्हारे पाप कर्म को बाँटने के लिए तैयार नहीं हैं, फिर इतनी हिंसा किसके लिए !' वाल्मीकि के ज्ञान-चक्षु खुल गए। वह ऋषियों की प्रेरणा से धर्मस्थ और समाधिस्थ हो गया। और तब वाल्मीकि रामायण की रचना हुई। भगवान कहते हैं कि जाति, मित्र, पुत्र, परिवार, पत्नी, माता-पिता कोई भी व्यक्ति के दुःखों को बाँट नहीं सकता है। वह राजकुमार अनाथी जिसकी आँख में भयंकर दर्द उठा, असहनीय पीड़ा शुरू हो गई, परिवार के लोग सभी तरह का उपचार करा चुके, पर कुछ फर्क नहीं पड़ा। राजवैद्य अपनी अक्षमता पर दुःखी हो चला। बेतहाशा घोर पीड़ा के बीच राजकुमार अपनी पत्नी से कहता है, 'बहुत पीड़ा हो रही है, कुछ उपाय करो।' पत्नी क्या कर सकती थी, वह रोने लग गई। माँ से भी कहा, पर उसकी आँखों में भी पानी था। सभी उसकी पीड़ा देखकर कुछ नहीं कर पा रहे थे। तब अनाथी संकल्प लेता है कि अगर मेरी आँख का दर्द चला गया, मेरी पीड़ा मिट गई, तो मैं कल सुबह संन्यास के मार्ग पर चल दूंगा। संयोग से सुबह तक आँख बिल्कुल ठीक हो गई। तब राजकुमार सोचता है, 'ओह ! इस दुनिया में कोई किसी का नाथ नहीं है। और वह मुनि-जीवन ग्रहण कर लेता है। ___ राजा श्रेणिक उसके पास आते हैं और कहते हैं, 'राजकुमार, तुम इस जंगल में क्या कर रहे हो ? तुम्हारा इतना सुन्दर व्यक्तित्व है, तुम यहाँ कहाँ साधना में लगे हो। यह समय और आयुष्य साधना का नहीं है। चलो, तुम राजमहलों में चलो। मैं तुम्हारे लिए श्रेष्ठ व्यवस्थाएँ करा देता हूँ। राजा ने उससे नाम पूछा, उसने बताया कि उसका नाम अनाथी मुनि है, संसार के सभी नाम छूट गये हैं। श्रेणिक ने कहा, 'अनाथी ! क्या तुम्हारा कोई नाथ नहीं है ?' उसने कहा, 'हाँ, मेरा कोई नाथ नहीं है, क्योंकि इस धरती पर दुःख-दर्द से बचाने वाला, कष्टों से बचाने वाला कोई नहीं है। इसलिए दुनिया में जीने वाला हर इंसान अनाथ है।' कोई किसी का नाथ नहीं है। किसी पर कोई दुःख आने पर कोई साथ निभाने वाला नहीं है। व्यक्ति का मित्र कौन ? जो हर सुख-दुख में साथ कर्म : बंधन और मुक्ति 3 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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