SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्ति अपने पुत्र को पास बुलाता है और कहता है, ‘मकान के पिछवाड़े आँगन में धन गड़ा हुआ है निकाल लेना।' वह उठता है, सोचता है, सुबह-सुबह इतनी क्या जल्दी है। सूरज तो उग ही रहा है, पूरा दिन है कभी भी खोदकर निकाल लेंगे। सोया रहा, न उठा। दोपहर में सोचा कि चलो अब निकाल लेते हैं। लेकिन उफ, इतनी धूप, इतनी तेज गर्मी, कैसे खुदाई करूँगा? अच्छा, साँझ ढलेगी तब निकाल लूँगा। शाम के वक्त कुदाली लेकर चला खुदाई करने, अभी दो-चार बार कुदाली ही चलाई होगी कि सूरज ढल गया, अँधेरा घिर आया, अब कैसे धन निकाले ? हमारा जीवन भी ऐसे ही चलता है। हम जागरण का उपाय नहीं करते। बस, टालते चले जाते हैं। जीवन के सारभूत अर्थ भी कल पर टलते चले जाते हैं। क्या तुम जगत में कम भटके हो, क्या कम दुःख भोगा है ? अब इन जड़ों को और मत सींचो। लेकिन जब तुम्हें कोई जगाता है तो वह तुम्हें अपना नही मालूम पड़ता, कभी-कभी तो दुश्मन ही लगता है। तभी तो तुम सुकरात को जहर पिला देते हो, जीसस को क्रॉस पर लटका देते हो या महावीर को पत्थर मारते हो और कानों में कीलें ठोंकते हो। ये सब तो तुम्हारी नींद तोड़ने आये थे, स्वप्नों से जगाने आए थे। मेरे पास भी लोग आते हैं। कभी-कभी मैं युवकों से कहता हूँ कि कुछ धर्म की ओर मुड़ो, संसार में कामना और तृष्णा का जाल है इससे मुक्त होओ। अपने शिवस्वरूप को पहचानो। तब युवक कहते हैं कि महाराजजी, अभी तो सारी उम्र पड़ी है, जरा संसार भी तो देख लें, फिर बुढ़ापे में धर्म ही तो करना है। उनके अभिभावक भी यही कहते सुने जाते हैं। धर्म को बुढ़ापे की चीज मान लिया गया है। लेकिन वह नहीं जानता कि बुढ़ापा आ पाएगा या नहीं। जो तुम अभी नहीं करना चाहते, वह जर्जर शरीर कैसे कर पाएगा? ओह, मूर्छा बड़ी गहरी है। ___व्यक्ति शराब पीने से बेहोश नहीं होता, बेहोश है इसलिए शराब पी रहा है। संसार में पैदा होने से व्यक्ति संसार में आसक्त नहीं होता, आसक्त है इसलिए संसार में जी रहा है। जो सपनों में जीते हैं, वे मौका पड़ने पर भी जाग्रत नहीं होते और बिना जागरण के जीवन में कुछ भी उपलब्ध नहीं होता। सोए हुए पुरुषों का सारभूत अर्थ नष्ट हो जाता है, इसलिए भगवान कहते हैं-जागो, सतत जाग्रत रहो, निरंतर जागते रहो। आपने शायद भगवान बुद्ध की सोई हुई, लेटी हुई प्रतिमा देखी होगी। वे एक ओर करवट लेकर सोए धार्मिक जगे, अधार्मिक सोए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy