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पूछा, 'फिर क्या हुआ ?' 'चल खिड़की के पास', हनुमानजी बोले। मैं खिड़की के पास गया। हनुमानजी ने कहा, 'चल उठा खीर का प्याला, खा। मैंने कहा, 'हनुमानजी ! क्षमा करें मेरे दो दोस्त और हैं, वे बुरा मानेंगे। हनुमानजी ने गदा दिखाते हुए कहा कि खाता है या नहीं.....। मैं तो एकदम डर गया और प्याला उठाकर खीर खा गया। दोस्तों ने कहा, 'तुम सपने की बात कर रहे हो या....?' वे झट से खड़े हुए, खिड़की के पास गए और देखा कि खीर का प्याला खाली था। उन्होंने कहा, 'तने तो गजब कर दिया, सपने को हकीकत में बदल दिया। लेकिन तूने हनुमानजी से यह क्यों नहीं कहा कि मेरे दो दोस्त और है, उन्हें भी खीर खिला दूं।' ___'मैंने तो कहा था, बिल्कुल यही कि मेरे दो दोस्त और हैं, तो हनुमानजी ने कहा कि दो में से एक अयोध्या गया है और दूसरा कैलाश पर्वत पर, यहाँ कोई नहीं है, तू अकेला है।
तुम सपनों को भी सच समझ लेते हो। इसलिए भगवान कहते हैं कि जो सोता है उसके अर्थ नष्ट हो जाते हैं। सोए हुए को कुछ भी हासिल नहीं होता। यहाँ तो लोग खुली आँखों से सोते हैं। पतंजलि ने योगसूत्र में मनुष्य के चित्त की तीन दशाएँ कही हैं-एक है सुषुप्ति, दूसरी है जाग्रत और तीसरी दशा है स्वप्न। जिस अवस्था में हम हैं वह स्वप्न की अवस्था है। स्वप्न यानी संसार। सुषुप्ति अर्थात् बेहोशी। हम इस बात से बेखबर ही हैं कि हम स्वप्न में हैं। जिंदगी तो चली ही जा रही है इस आपाधापी में कि कुछ पा लें, पर हाथ में सिवाय राख के कुछ नहीं लगता। जिंदगी से पाया तो कुछ नहीं, एक नई मौत पाई, फिर जन्मने की वासना कमाई।
स्वप्न दशा. से बाहर निकलने के दो ही उपाय हैं कि या तो सुषुप्ति/बेहोशी में डूब जाओ या महावीर, बुद्ध और पतंजलि की तरह जाग्रत हो जाओ। तुम जिसे जागरण कहते हो वह खुली आँखों का सपना है और महावीर, बुद्ध या पतंजलि जिसे जागरण कहते हैं वह उस दशा का नाम है, जब तुम्हारा मन ऐसा निष्कलुष होता है कि उसमें विचार, विकार और विकल्प की एक भी तरंग नहीं उठती। जब तक तुम्हारे अंदर पाने की आकांक्षा मौजूद है तुम स्वप्न में हो। फिर तुम्हारी आँखें खुली हैं या बंद इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, तुम बेहोश हो। महावीर के लिए तो होश तभी है जब तुम्हारा चित्त निर्विचार हो, निर्विकार हो।
धर्म, आखिर क्या है?
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