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________________ नहीं होता, उसे तो केवल अनुभव किया जा सकता है। क्या अलग-अलग मिठाइयों का स्वाद बता सकते हो ? नहीं, वह तो केवल खाकर ही अनुभव किया जा सकता है। श्रीमद् राजचन्द्र कहते हैं जे पद श्री सर्वज्ञे दीठू ज्ञान मां कही सक्या नहीं पण ते श्री भगवान जो। तेह स्वरूप ने अन्य वाणी तो यूं कहे, अनुभव गोचर मात्र रह्यो ते ज्ञान जो॥ उस ईश्वर का, धर्म का, आत्मा का, परमात्मा का, मोक्ष का ज्ञान तो स्वयं भगवान भी नहीं कह पाये, उस ईश्वर की प्रस्तुति मैं कैसे कर सकता हूँ। यह तो 'गूंगे केरी सर्करा' है। वही इसे पा सकता है जो इस मार्ग का अनुसरण करता है, उस राह पर चल पड़ता है। मैंने सुना है, कहीं ईश्वर का प्रशिक्षण देने के लिए विद्यालय खुला। वहाँ एक व्यक्ति पहुँचा और बच्चों से पूछा, 'ईश्वर कहाँ है ?' जैसा कि बच्चों को सिखाया गया था, सभी एक साथ बोले, 'ईश्वर मनुष्य के हृदय में है। उस व्यक्ति ने पूछा, 'हृदय कहाँ है ?' बच्चों ने कहा, 'यह हमें नहीं बताया गया।' क्या आपको नहीं लगता कि हमारा बोध, हमारे जीवन की व्यवस्थाएँ भी इसी प्रकार की हैं। वे उस मृत चट्टान की तरह हो गई हैं जहाँ से कोई झरना नहीं फूटता, जहाँ कोई सरित-प्रवाह नहीं है। नदी बहती हुई विस्तीर्ण होती जाती है वैसे ही धर्म भी मनुष्य को विशाल बनाता है। जो धर्म संकीर्णता देता है वह नदी नहीं, नाला बन जाता है। सूत्र है धम्मो मंगलमुक्किटुं, अहिंसा-संजमो तवो।. देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सयामणो।। इस सूत्र में धर्म की जीवंत प्रस्तुति है। कहा गया है कि न तो धर्म जैन है और न ही हिन्दू, मुस्लिम, ईसाइयत, बौद्ध, सिक्ख धर्म है। धर्म न हिंदू बौद्ध है, धर्म न मुस्लिम जैन, धर्म चित्त की शुद्धता, धर्म शांति सुख चैन। धर्म मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा मंगल है। अहिंसा, संयम और तप उसके लक्षण हैं। जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है, उसे देव भी धर्म,आखिर क्या है? 28 . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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