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धर्म किसी का कहा हुआ मार्ग नहीं है। अगर किसी के बताने से ईश्वर की प्राप्ति हो जाती तो हर गुरु अपने शिष्य को ज्ञान दे देता, हर पिता अपने पुत्र को बता देता कि वह रहा ईश्वर और उसे इस ढंग से प्राप्त कर ले। बताने से जानकारियाँ मिलती हैं, बोध और अनुभव नहीं। किसी नक्शे में हिमालय, गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्री और केदार देख सकते हो, लेकिन वहाँ की ठंडी हवाएँ, वहाँ का सौन्दर्य कैसे देख पाओगे ? नक्शे से तुम जानकारी प्राप्त कर सकते हो, अनुभव नहीं। हमारे शास्त्र भी नक्शे हैं। सत्य-प्राप्ति के लिए तो सागर में गोता लगाना ही पड़ेगा, तब ही मोती भी मिलेंगे।
स्वामी विवेकानंद, जिनके बचपन का नाम नरेन्द्र था, के मन में प्रश्न उठा कि क्या ईश्वर है ? वह संतों, ऋषियों के पास तलाशने गया कि क्या ईश्वर है ? वह भटकता रहा और पूछता रहा कि क्या किसी ने ईश्वर देखा है ? कहते हैं, खोजता-खोजता वह युवक रवीन्द्रनाथ टैगोर के दादाजी के पास पहुँचा। वे नौका में गंगा की धारा के मध्य अर्द्धरात्रि को ध्यान-साधना कर रहे थे। इस समय नरेन्द्र तैरता हआ उनकी नौका पर पहुंचा और प्रश्न पूछा, 'क्या आपने ईश्वर को देखा है ?' दादाजी ने कहा, 'बैठो, मैं तुम्हें बताता हूँ।' उन्होंने विभिन्न ग्रंथों के उद्धरणों द्वारा ईश्वर को प्रमाणित करना चाहा। नरेन्द्र ने कहा, 'मुझे यह जवाब नहीं चाहिए कि किस ग्रंथ में क्या लिखा है। यह तो मैं खुद भी पढ़ सकता हूँ। मैं तो यह जानना चाहता हूँ कि क्या आपने ईश्वर को देखा है ?' और वह पानी में कूद गया। दादाजी ने कहा, 'रुको तो सही मैं बताता हूँ।' नरेन्द्र ने कहा, 'मैं ईश्वर का ज्ञान पाने नहीं आया हूँ, मैं तो यह पूछने आया हूँ कि क्या आपने ईश्वर को देखा है ?' ___इसी तरह पूछते-पूछते वे कलकत्ता पहुँचे रामकृष्ण परमहंस के पास।
और जैसे अन्य संतों से प्रश्न पूछते थे, वैसे ही परमहंस से पूछा, 'क्या आपने ईश्वर देखा है ?' रामकृष्ण पहुँचे हुए संत थे। उन्होंने कहा, 'चुप, मैंने ईश्वर देखा है या नहीं इस बात को छोड़ दे। क्या तुझे ईश्वर देखना है ?' नरेन्द्र ने तो यह सोचा भी न था कि ऐसा भी हो सकता है कि कोई मुझसे ही पूछने लगे। वह तो सोच में ही व्यस्त था कि उसके गाल पर जोर का चाँटा पड़ा। नरेन्द्र बेहोश हो गया और जब तीन दिन बाद होश आया तो रामकृष्ण ने पूछा, 'कोई प्रश्न ?' विवेकानन्द हाथ जोड़कर खड़े हो गए। ईश्वर का ज्ञान
धर्म, फिर से समझेंएक बार
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