SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म वैयक्तिक होता है। चार लोगों ने मंच पर ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह या सत्यमय जीवन जीने की दीक्षा अंगीकार की, लेकिन आवश्यक नहीं कि वे चारों एक जैसा जीवन जीएँ। कोई दीक्षा लेकर ऊँचाइयों को छू सकता है और कोई पतन के गर्त में भी गिर सकता है, क्योंकि दीक्षा लेना सामुदायिक काम है और दीक्षा को जीना वैयक्तिक काम है। नियम सामुदायिक होते हैं और पालन वैयक्तिक। संवत्सरी पर सामूहिक उपवास तो कर लिए जाते हैं, लेकिन क्या आत्मवास हो पाता है ? प्रतिज्ञा सामूहिक हो सकती है, परन्तु पालन वैयक्तिकता पर निर्भर है। धर्म कोई प्रतिज्ञा नहीं है, कोई नियम या कानून भर नहीं है और न ही परम्परा भर है। भगवान महावीर ने कहा है, 'वत्थु सहावो धम्मो'–व्यक्ति की चेतना का मौलिक स्वभाव ही धर्म है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि धर्म को फिर से समझना आवश्यक है। हमने किसे धर्म माना है ? हमने धर्मसभा या धार्मिक प्रवचन या सत्संग को ही धर्म मान लिया है; मंदिर में की जाने वाली पूजाओं को ही धर्म मान लिया है; कहीं जीवदया और पौषध करने को धर्म मान लिया है। नहीं, यह सामुदायिक धर्म हो सकता है, व्यक्तिगत धर्म नहीं। तुम प्रवचन-सभाओं में सबके साथ बैठकर बखान सुन रहे हो लेकिन संभव है मन में किसी आए हुए चेक को कैश कराने की सोच रहे हो या आज कौन-सी सब्जी बनाई जाए इसका विचार चल रहा हो। व्यक्ति का सामुदायिक जीवन कुछ और, व्यावहारिक जीवन कुछ और तथा निजी एवं व्यक्तिगत जीवन कुछ और ही होता है। इसलिए धर्म नितांत व्यक्तिगत वस्तु है। धर्म मनुष्य का जीवन है। आज हमने सामुदायिक जीवन को ही धर्म मान लिया है। आपने देखा-सुना होगा कि मुसलमान दिन में पाँच बार नमाज अदा करते हैं, क्यों? क्या कभी इस पर विचार किया ? सीधा-सा कारण है डॉक्टर रोगी को दवा देता है कि दिन में चार बार लेना, क्योंकि एक बार ली गई दवा का असर कुछ घण्टे रहेगा, फिर दूसरी खुराक लेने पर दवा का असर लगातार बना रहेगा। खुदा की याद निरन्तर बनी रहे, इसीलिए पाँच बार नमाज अदा की जाती है। सुबह-साँझ प्रतिक्रमण का विधान क्यों ? ताकि बीच के समय में पापों से बचने का बोध बना रहे। सामुदायिक काम प्रतिक्रमण करना है, लेकिन सुबह से शाम तक स्वयं को अतिक्रमण से मुक्त रखना व्यक्तिगत कार्य है। धर्म, आखिर क्या है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy