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________________ आदमी को न रात में दिखाई देता है और न दिन में। उसके जीवन में ऐसी अंधता आ जाती है कि वह दूसरा कुछ देख ही नहीं पाता। यह मन की गहन कमजोरी का परिणाम है कि वह विषय-वासना में लिप्त रहता है। भगवान कहते हैं ऐसा व्यक्ति नील लेश्या से युक्त है। जो मंदता, बुद्धिहीनता, अज्ञान तथा विषय-लोलुपता से मुक्त हो जाता है, वह कापोल लेश्या में प्रविष्ट हो जाता है। कापोत लेश्या-युक्त व्यक्ति के लक्षण भगवान बताते हैं रूसई णिंदई अन्ने, दूसई बहुसोय सोयभयबहुलो। णगणइ कज्जाकज्जं लक्खणमेयं तु काउस्स।। जल्दी रुष्ट हो जाना, दूसरों की निंदा करना, दोष लगाना, अति शोकाकुल होना और अत्यन्त भयभीत होना, ये कापोत लेश्या के लक्षण हैं। ___तुमने कभी सोचा है कि कैसी छोटी-छोटी बातों पर तुम रूठ जाते हो। पत्नी को चाय लाने में पाँच मिनट की देरी हो गई, बस तुम रुष्ट हो गए। और ऐसे रुष्ट का रोष शायद दिन भर रहे। अगर गौर करो तो तुम पाओगे कि रूठने का कोई कारण न था। जो व्यर्थ की बातें हैं उनके कारण हम रुष्ट हो जाते हैं। कोई आदमी हमें देखकर हँस दे, हम रुष्ट हो जाते हैं। भगवान कहते हैं कि यह कापोत लेश्या का पहला लक्षण है। दूसरा लक्षण है, 'दूसरों की निंदा'। व्यक्ति का निंदा में गहरा रस है। वह बात करने के बहाने से दूसरों की निंदा में संलग्न हो जाता है। शायद पकवानों में भी वह रस और स्वाद नहीं होता, जो चटपटापन निंदा करने में है। भगवान कहते हैं, इससे तू अनंत कर्म का बंधन कर रहा है। स्वयं को देख और इस लोक-जंजाल से स्वयं को सँभाल। दूसरों के जंजाल छोड़ और अपनी सुलझा। निज मां वश, पर थी खस, एटलुं बस। स्वयं में लौट आना ही जीवन का चरम अध्याय है। दूसरों की निंदा कर व्यक्ति स्वयं को कलुषित ही बनाता है। भगवान कापोत लेश्या का तीसरा लक्षण बताते हैं-'दोष लगाना'। इस विद्या में तो प्रायः सभी माहिर होते हैं। जिस बात का पता नहीं है, जिसके बारे में कुछ भी जानते नहीं हैं फिर भी लोग दोष लगाने से चूकते नहीं। उनकी लेश्याओं के पार धर्मका जगत 133 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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